सऊदी अरब, तेल पर अपनी सदियों पुरानी निर्भरता को खत्म कर, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डिजिटल क्रांति के क्षेत्र में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरने के लिए तेजी से कदम बढ़ा रहा है। क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) की ‘विजन 2030’ के तहत, किंगडम ने AI इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश की रणनीति अपनाई है, जिसका लक्ष्य इसे वैश्विक तकनीकी परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाना है।
इस महत्वाकांक्षी योजना का एक प्रमुख स्तंभ लाल सागर के तट पर बनने वाला 5 अरब डॉलर का अत्याधुनिक डेटा सेंटर है। यह सुविधा न केवल सऊदी अरब की कंप्यूटिंग क्षमता को अभूतपूर्व रूप से बढ़ाएगी, बल्कि यूरोप और उसके बाहर AI के विकास को भी गति प्रदान करेगी। MBS इस परिवर्तन का नेतृत्व कर रहे हैं, अपने देश के प्रचुर ऊर्जा संसाधनों, विशाल भूभाग और वित्तीय ताकत का उपयोग करके दुनिया की शीर्ष AI कंपनियों को आकर्षित कर रहे हैं।
अमेरिकी टेक दिग्गज जैसे OpenAI, Google, Qualcomm, Intel और Oracle पहले से ही सऊदी अरब की योजनाओं में गहरी रुचि दिखा रहे हैं। MBS की हालिया अमेरिकी यात्रा इन महत्वाकांक्षाओं को साकार करने और प्रमुख तकनीकी साझेदारियों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण कदम था।
सऊदी अरब ने ‘हुमाइन’ (Humain) नामक एक राष्ट्रीय AI पहल भी शुरू की है, जिसका लक्ष्य आने वाले वर्षों में वैश्विक AI कंप्यूटिंग वर्कलोड का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपने डेटा सेंटरों के माध्यम से नियंत्रित करना है। इस पहल के तहत, देश तीन बड़े डेटा सेंटर कॉम्प्लेक्स का निर्माण कर रहा है, जो विदेशी कंपनियों को AI विकास के लिए एक मजबूत मंच प्रदान करेंगे।
हालांकि, इस दौड़ में क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता भी देखी जा रही है। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने हाल ही में OpenAI के साथ एक बड़ी साझेदारी की है, जिससे AI के क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। वहीं, अमेरिका सऊदी अरब और चीन के बीच बढ़ते संबंधों को लेकर सतर्क है, खासकर संवेदनशील प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण को लेकर।
MBS ने चतुराई से इन कूटनीतिक चुनौतियों का सामना किया है। उन्होंने अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हुए चीन से भी निवेश और तकनीकी सहयोग को बढ़ावा दिया है। उदाहरण के तौर पर, सऊदी अरामको ने अपनी परिचालन क्षमता को बढ़ाने के लिए चीनी AI फर्म DeepSeek का उपयोग किया है।
‘हुमाइन’ पहल के तहत, सऊदी अरब Nvidia, AMD और Qualcomm जैसी कंपनियों से सेमीकंडक्टर की आपूर्ति हासिल करने की योजना बना रहा है, और Amazon के साथ AI इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए एक बड़े समझौते पर भी काम कर रहा है। इन योजनाओं को पूरा करने के लिए, किंगडम अपने ऊर्जा ग्रिड का विस्तार कर रहा है, ताकि डेटा सेंटरों की भारी बिजली की जरूरतों को पूरा किया जा सके।
इस तरह, सऊदी अरब खुद को अमेरिका और चीन के बाद AI कंप्यूटिंग के तीसरे वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करने की ओर अग्रसर है। हालांकि, अमेरिका और चीन जैसी महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाए रखना, खासकर उन्नत चिप्स और रक्षा प्रौद्योगिकियों के मामले में, एक नाजुक कूटनीतिक कार्य है। MBS की वाशिंगटन यात्रा के दौरान हुए समझौते, जिसमें अमेरिका में 1 ट्रिलियन डॉलर तक के निवेश का वादा और F-35 लड़ाकू विमानों की खरीद शामिल है, सऊदी अरब की बढ़ती वैश्विक प्रभाव को दर्शाते हैं।
MBS की यह रणनीति अमेरिका को सऊदी अरब को नजरअंदाज करने से रोकती है, जबकि चीन के साथ जुड़ाव यह संदेश देता है कि किसी भी हिचकिचाहट का परिणाम रियाद का बीजिंग की ओर झुकाव हो सकता है।
रक्षा संधि और यूरेनियम संवर्धन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय अभी बाकी हैं, लेकिन ‘विजन 2030’ के तहत सऊदी अरब की दिशा स्पष्ट है – तेल से परे विविधीकरण और एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाना।
