नेपाल एक बार फिर भूकंपीय हलचल का केंद्र बना, जब रविवार सुबह 4.1 तीव्रता का भूकंप आया। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र (NCS) के अनुसार, इस भूकंप ने सुबह 8:13 बजे के आसपास लोगों को अपनी चपेट में लिया। भूकंप का केंद्र सतह से मात्र 5 किलोमीटर नीचे स्थित था, जो इसे अपेक्षाकृत उथला भूकंप बनाता है। NCS ने एक्स पर साझा की गई जानकारी में भूकंप के सटीक निर्देशांक भी बताए: 29.59 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 80.83 डिग्री पूर्वी देशांतर।
यह घटना हाल के दिनों में नेपाल में आए भूकंपों की श्रृंखला की एक कड़ी है। इससे पहले, 30 नवंबर को 4.2 तीव्रता का भूकंप इसी क्षेत्र में आया था, जिसका केंद्र 10 किलोमीटर की गहराई पर था। उससे कुछ समय पहले, 6 नवंबर को भी 3.6 तीव्रता का भूकंप 10 किलोमीटर की गहराई पर दर्ज किया गया था।
भूकंप विज्ञानी बताते हैं कि कम गहराई वाले भूकंप अधिक विनाशकारी होते हैं। सतह के करीब कंपन अधिक तीव्र होता है, जिसके परिणामस्वरूप इमारतों को गंभीर क्षति पहुँचती है और हताहतों की संख्या भी बढ़ सकती है। इसके विपरीत, गहरे भूकंपों की ऊर्जा सतह तक पहुँचते-पहुँचते क्षीण हो जाती है।
नेपाल की भौगोलिक स्थिति उसे भूकंप के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती है। यह इंडो-ऑस्ट्रेलियन टेक्टोनिक प्लेट और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट के मिलन बिंदु पर स्थित है, जहाँ ये दोनों प्लेटें लगातार एक-दूसरे से टकरा रही हैं। इस टकराव के कारण भारी मात्रा में ऊर्जा जमा होती है, जो भूकंपीय घटनाओं के रूप में मुक्त होती है। भारतीय प्लेट के यूरेशियन प्लेट के नीचे सबडक्ट होने की प्रक्रिया इस क्षेत्र में तनाव और खिंचाव को और बढ़ाती है, जिससे भूकंप का खतरा बना रहता है।
हिमालय पर्वत श्रृंखला, जो दुनिया की सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्रों में से एक है, नेपाल की सीमा में फैली हुई है। भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के निरंतर टकराव के कारण यह क्षेत्र भारी दबाव में है। सबडक्शन ज़ोन की उपस्थिति इस दबाव को और तीव्र करती है। इसी टकराव का परिणाम है कि हिमालय का उत्थान भी हो रहा है, जो क्षेत्र की भूकंपीय गतिविधि को और अधिक उत्तेजित करता है। नेपाल ने अतीत में 2015 जैसे विनाशकारी भूकंपों का अनुभव किया है, जो इसकी भूकंप संवेदनशीलता को उजागर करते हैं।
