रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की 23वीं भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक के लिए नई दिल्ली यात्रा, वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाने वाली एक महत्वपूर्ण घटना थी। यह यात्रा भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बीच दोनों देशों के बीच दशकों पुराने मजबूत संबंधों की पुष्टि करती है। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह किसी एक महाशक्ति के गुट में शामिल होने के बजाय अपने हितों के अनुसार निर्णय लेना जारी रखेगा।
शिखर बैठक में व्यापार, प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, परमाणु सहयोग, श्रम गतिशीलता, स्वास्थ्य और समुद्री प्रशिक्षण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कई समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए। RELOS लॉजिस्टिक्स जैसे समझौते दोनों देशों के बीच व्यावहारिक सहयोग को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का संकेत देते हैं। हालांकि, इन औपचारिक समझौतों से भी अधिक महत्वपूर्ण वे रणनीतिक संदेश थे जो इस यात्रा से निकले।
**भू-राजनीतिक बदलाव और भारत का बढ़ता प्रभाव:**
पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने मॉस्को को पश्चिमी बाजारों से दूर कर दिया है, जिससे उसका झुकाव पूर्व की ओर बढ़ा है। भारत इस बदलाव का एक प्रमुख लाभार्थी बनकर उभरा है। प्रतिबंधों ने रूस को एशिया के साथ, विशेषकर भारत के साथ, अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को गहरा करने के लिए प्रेरित किया है। इस स्थिति ने भारत की मोलभाव करने की क्षमता को बढ़ाया है।
ऊर्जा क्षेत्र इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस द्वारा रियायती दरों पर पेश किए गए कच्चे तेल ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत किया है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद की है। हाल के प्रतिबंधों के बावजूद, ऊर्जा व्यापार का यह नया मार्ग अब इतना मजबूत हो गया है कि इसे अन्य वस्तुओं तक विस्तारित किया जा सकता है।
**विविधता में एकता: भारत की बहु-संरेखण रणनीति:**
रूस, जिसे पश्चिमी देशों से प्रौद्योगिकी और वित्तीय सहायता नहीं मिल रही है, भारत जैसे विश्वसनीय साझेदारों की ओर देख रहा है। भारत के लिए, रूस के साथ मजबूत संबंध उसकी रणनीतिक स्वायत्तता को बढ़ाते हैं और उसे विभिन्न वैश्विक शक्तियों के बीच अधिक विकल्प प्रदान करते हैं।
भारत अमेरिका और यूरोप जैसे पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है, लेकिन उसने रूस के साथ अपनी ऐतिहासिक साझेदारी को भी बनाए रखा है। रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में अनुपस्थित रहना, रूसी तेल खरीदना और साथ ही पश्चिम के साथ रक्षा और प्रौद्योगिकी में सहयोग बढ़ाना, भारत की लचीली और स्वतंत्र कूटनीति का प्रमाण है। यह विरोधाभासी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति है।
**चुनौतियों के बीच अवसर:**
यह साझेदारी चुनौतियों से मुक्त नहीं है। यूक्रेन युद्ध की लंबी अवधि भारत पर पश्चिमी देशों के दबाव को बढ़ा सकती है। नई दिल्ली को सावधानीपूर्वक कूटनीति के माध्यम से इन चुनौतियों का प्रबंधन करना होगा। हालांकि, इस रिश्ते के फायदे भी महत्वपूर्ण हैं। यह भारत को एक ऐसी प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करता है जो दुनिया के विभिन्न ध्रुवों के साथ जुड़ सकती है, जिससे वैश्विक मंच पर उसका महत्व बढ़ता है।
**भारत-रूस संबंधों के मुख्य आधार:**
दोनों देशों के बीच संबंध तीन मुख्य स्तंभों पर आधारित हैं: रक्षा, अर्थव्यवस्था और ऊर्जा।
* **रक्षा:** भारतीय सेना का एक बड़ा हिस्सा अभी भी रूसी उपकरणों पर निर्भर है, जिसके रखरखाव और उन्नयन के लिए रूस की सहायता महत्वपूर्ण है। RELOS समझौते से दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग और मजबूत होगा।
* **व्यापार:** दोनों देशों का लक्ष्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। वे रुपे और मीर भुगतान प्रणालियों को जोड़ने पर भी विचार कर रहे हैं, जो अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने की दिशा में एक कदम है।
* **ऊर्जा:** रूस ने भारत को निर्बाध ऊर्जा आपूर्ति का वादा किया है। इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा, महत्वपूर्ण खनिज और श्रम गतिशीलता जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग बढ़ाया जाएगा।
**रणनीतिक स्वायत्तता का प्रतीक:**
पुतिन की यात्रा भारत की ‘बहु-संरेखण’ (multi-alignment) कूटनीति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। भारत रूस के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हुए अमेरिका, यूरोप और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ भी अपने जुड़ाव को मजबूत कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पुतिन का स्वागत और निजी रात्रिभोज, दोनों देशों के बीच व्यक्तिगत संबंधों की मजबूती और इस रिश्ते के महत्व को दर्शाता है।
रूस के लिए, भारत चीन पर अपनी निर्भरता को संतुलित करने में मदद करता है। भारत के लिए, रूस रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भागीदार है।
**एक व्यावहारिक पुनर्संयोजन:**
यह शिखर बैठक एक ऐतिहासिक मिलन से बढ़कर एक व्यावहारिक कदम था। यह वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत-रूस संबंधों के पुनर्संयोजन का प्रतिनिधित्व करता है। दोनों देश मानते हैं कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में भी उनके साझा हित बने हुए हैं।
यह यात्रा दर्शाती है कि भारत अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखने के लिए सभी रास्तों को खुला रखेगा, जबकि भारत-रूस की अस्सी साल पुरानी साझेदारी व्यावहारिकता और साझा लचीलेपन पर आधारित एक नए चरण में प्रवेश कर रही है।
