हालिया ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना की अचूक मारक क्षमता का प्रदर्शन, काफी हद तक उसके पुराने सहयोगी रूस के सहयोग का परिणाम था। दशकों के भारत-रूस रक्षा सहयोग ने देश को ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइलों, एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम और उन्नत लड़ाकू विमानों जैसी अत्याधुनिक हथियार प्रणालियाँ प्रदान की हैं, जो भारतीय सेना की ताकत को बढ़ाती हैं।
राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की आगामी भारत यात्रा (4-5 दिसंबर) के दौरान, भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी फिर से चर्चा का केंद्र बनेगी। उम्मीद है कि इस मुलाकात में घरेलू रक्षा परियोजना ‘सुदर्शन चक्र’ के अगले चरण और भारत की रक्षा क्षमता को और मजबूत करने वाले एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की अतिरिक्त खरीद पर बातचीत होगी। एस-400 प्रणाली ने पाकिस्तान के खिलाफ हालिया सैन्य कार्रवाई में अपनी असाधारण प्रभावशीलता सिद्ध की थी।
मॉस्को के साथ भारत के रक्षा संबंध एक लंबा इतिहास रखते हैं। 1970 के दशक में भारतीय वायु सेना रूसी SAM-2 मिसाइलों पर निर्भर थी। इसके बाद, मिग सीरीज़ के लड़ाकू विमानों (मिग-21, मिग-23, मिग-27, मिग-29, मिग-25) और टी-90 टैंकों ने दशकों तक भारत की सैन्य तैयारी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
समय के साथ, यह संबंध सिर्फ हथियार खरीद से आगे बढ़कर एक मजबूत प्रौद्योगिकी-साझेदारी में बदल गया है। पिछले दो-तीन दशकों में, यह सहयोग साधारण खरीद से संयुक्त विकास की ओर अग्रसर हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप ब्रह्मोस मिसाइल जैसी अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों का निर्माण संभव हुआ है।
ब्रह्मपुत्र और मोस्कवा नदियों के नाम पर विकसित की गई ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली ने ऑपरेशन सिंदूर में अपनी बेमिसाल गति और सटीकता का लोहा मनवाया। दुश्मन के लक्ष्यों पर सटीक हमला इसी क्षमता का परिणाम था।
रूस से प्राप्त एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम भी उतना ही महत्वपूर्ण साबित हुआ। इस प्रणाली का उपयोग आने वाली मिसाइलों और ड्रोनों को रोकने के लिए प्रभावी ढंग से किया गया। इसके उन्नत रडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर क्षमताओं ने एक सुरक्षा कवच बनाया, जिसने भारतीय हवाई क्षेत्र को सुरक्षित रखा।
आक्रामक अभियानों में, रूस के लाइसेंस के तहत भारत में निर्मित सुखोई लड़ाकू विमानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय वायु सेना के प्रमुख हथियारों में से एक होने के नाते, सुखोई ने प्रत्यक्ष हमले के अभियानों में अपनी अहमियत साबित की है।
भारत और रूस के बीच की साझेदारी पारंपरिक सुरक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परमाणु ऊर्जा, अंतरिक्ष अनुसंधान और पनडुब्बी विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में भी फैली हुई है। रूस के परमाणु रिएक्टर भारत के असैन्य परमाणु कार्यक्रम का आधार हैं, संयुक्त अंतरिक्ष मिशनों से उपग्रह प्रक्षेपण में मदद मिली है, और उन्नत पनडुब्बी सहयोग भारत की समुद्री सुरक्षा को मजबूत कर रहा है।
आज, भारतीय रक्षा उद्योग कई प्रमुख प्रौद्योगिकियों के लिए रूसी कंपनियों के साथ मिलकर काम कर रहा है, जिससे देश की रणनीतिक क्षमताओं में और इज़ाफ़ा हो रहा है।
बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच, एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में रूस पर भारत की निर्भरता अटूट बनी हुई है। यह भारत के सबसे भरोसेमंद रणनीतिक संबंधों में से एक है, जिसने समय-समय पर अपनी महत्ता सिद्ध की है।
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य सफलता नहीं, बल्कि दशकों की गहरी दोस्ती का प्रमाण है। चाहे वह मॉस्को नदी हो या ब्रह्मपुत्र, भारत-रूस की यह साझेदारी मिसाइलों को शक्ति प्रदान कर रही है, रिएक्टरों को ऊर्जा दे रही है और भारत के आसमान की रक्षा कर रही है।
