अमेरिका ने भारत के सैन्य सामर्थ्य को एक नई ऊँचाई दी है, जिससे पाकिस्तान और चीन जैसे देशों के लिए चिंताएं बढ़ गई हैं। वाशिंगटन ने भारत को दो शक्तिशाली हथियार प्रणालियों की आपूर्ति को मंजूरी दी है, जो न केवल देश की रक्षा क्षमता को बढ़ाएंगी बल्कि क्षेत्रीय शक्ति समीकरणों को भी प्रभावित करेंगी।
यह 93 मिलियन अमेरिकी डॉलर का सौदा भारतीय सेना को आधुनिक युद्धक्षेत्र में बढ़त देगा। खास तौर पर, ‘फायर-एंड-forget’ जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें और एक्सकैलिबर प्रेसिजन-गाइडेड आर्टिलरी राउंड्स, दुश्मन के बख्तरबंद वाहनों और ठिकानों को सटीकता से निशाना बनाने में सक्षम होंगे।
हाल ही में, अमेरिका की रक्षा सुरक्षा सहयोग एजेंसी (DSCA) ने 45.7 मिलियन डॉलर की लागत से 100 जेवलिन मिसाइलों और 25 कमांड-लॉन्च यूनिट्स की बिक्री को हरी झंडी दी है। यह वही जेवलिन सिस्टम है जिसने यूक्रेन में रूसी टैंकों के खिलाफ अपनी मारक क्षमता साबित की है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि सैनिक मिसाइल दागने के बाद तुरंत कवर ले सकते हैं, क्योंकि मिसाइल स्वयं ही लक्ष्य का पीछा करती है। इससे दुश्मन के टैंकों को दो किलोमीटर से अधिक दूरी से भी नष्ट किया जा सकता है।
इसके अलावा, 47.1 मिलियन डॉलर के दूसरे सौदे में 216 M982A1 एक्सकैलिबर सटीक-निर्देशित आर्टिलरी राउंड्स शामिल हैं। ये GPS-निर्देशित तोपखाने के गोले दर्जनों किलोमीटर दूर स्थित लक्ष्यों को लेजर सटीकता के साथ भेदने में सक्षम हैं, जो भारतीय तोपखाने को एक सर्जिकल स्ट्राइक क्षमता प्रदान करते हैं।
जेवलिन एंटी-टैंक मिसाइलें विशेष रूप से बख्तरबंद वाहनों के खिलाफ प्रभावी हैं। ये मिसाइलें लक्ष्य के सबसे कमजोर हिस्से पर हमला करने के लिए डिज़ाइन की गई हैं। ये न केवल टैंकों को, बल्कि अन्य बख्तरबंद ठिकानों औरFortified पोजीशनों को भी तबाह कर सकती हैं। यह दुनिया के सबसे उन्नत पोर्टेबल एंटी-टैंक हथियारों में से एक है।
इन सैन्य सौदों के माध्यम से, अमेरिका का उद्देश्य भारत को उभरते खतरों से निपटने के लिए सशक्त बनाना और दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों को और गहरा करना है। ये नई खरीद भारतीय सेना की मौजूदा क्षमताओं को बढ़ाएगी और भविष्य के अभियानों के लिए तत्परता सुनिश्चित करेगी।
यह स्पष्ट है कि इन हथियारों के मिलने से भारत की रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताएं काफी बढ़ गई हैं। यह दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन को भारत के पक्ष में झुकाने वाला एक महत्वपूर्ण कदम है, और इससे पाकिस्तान और चीन की रणनीतिक योजनाओं पर गंभीर असर पड़ने की संभावना है।
