पाकिस्तान की संसद ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक संशोधन पारित किया है, जो सेना प्रमुख को न केवल आजीवन कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, बल्कि उनकी शक्तियों का विस्तार भी करता है, वहीं सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को कमतर करता है। इस बदलाव पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है, जिसे वे लोकतंत्र और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला करार दे रहे हैं।
**संसदीय मंजूरी और विपक्ष का बहिस्कार**
’27वां संवैधानिक संशोधन विधेयक’ नेशनल असेंबली में भारी बहुमत (234-4) से पारित हुआ। सीनेट में भी इसे लगभग सर्वसम्मति से मंजूरी मिल चुकी थी, जहाँ विपक्ष के सदस्यों ने सत्र से अनुपस्थिति दर्ज कराई थी। अब यह विधेयक छोटे संशोधनों पर पुनर्विचार के लिए सीनेट में वापस जाएगा, जिसके बाद राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की औपचारिक स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।
**’चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज’ के रूप में सेना प्रमुख**
इस नए कानून के तहत, पाकिस्तान के सेना प्रमुख अब ‘चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज’ (CDF) के अतिरिक्त पद से भी पहचाने जाएंगे। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है जो सेना प्रमुख को देश की तीनों सैन्य शाखाओं – थल सेना, नौसेना और वायु सेना – का सर्वोच्च कमांडर बनाता है। वर्तमान सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के पास अब पहले के किसी भी सेना प्रमुख की तुलना में अधिक व्यापक संवैधानिक अधिकार होंगे। इसके अतिरिक्त, फील्ड मार्शल, मार्शल ऑफ द एयर फोर्स, और एडमिरल ऑफ द फ्लीट जैसी मानद सैन्य उपाधियां सेवानिवृत्ति के बाद भी आजीवन प्रभावी रहेंगी।
**नई संवैधानिक अदालत और सुप्रीम कोर्ट का घटा अधिकार क्षेत्र**
संशोधन के एक अन्य प्रमुख हिस्से में ‘संघीय संवैधानिक न्यायालय’ (FCC) की स्थापना की गई है। यह न्यायालय संवैधानिक मुद्दों पर निर्णय लेगा, जिससे सर्वोच्च न्यायालय का कार्यक्षेत्र सीमित हो जाएगा। इस नए न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति सरकार करेगी और यह स्वतंत्र रूप से कार्य करेगा।
पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश (CJP) का पद नाम तो बना रहेगा, लेकिन भविष्य में CJP की परिभाषा बदल जाएगी, जिसमें FCC के मुख्य न्यायाधीश को भी शामिल किया जाएगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि नई संवैधानिक अदालत को उच्च राजद्रोह के मामलों पर फैसला सुनाने की अनुमति नहीं होगी, जिससे आलोचक सेना और अन्य संस्थाओं को जवाबदेही से बचाने का आरोप लगा रहे हैं।
**राजनीतिक घमासान: विरोध और समर्थन**
पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी, पीटीआई, ने इस संशोधन की कड़ी निंदा की है। पार्टी के नेताओं ने विधेयक को लोकतंत्र के ताबूत में आखिरी कील बताते हुए विरोध प्रदर्शन किया। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने इस विधेयक को पारित करने को राष्ट्रीय एकता और एकजुटता का प्रतीक बताया है।
