चीन ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाया है, जो अमेरिका के पुराने शोध पर आधारित है। चीनी वैज्ञानिकों ने सफलतापूर्वक थोरियम को यूरेनियम में परिवर्तित करने की तकनीक विकसित की है, जिससे असीमित स्वच्छ ऊर्जा का मार्ग प्रशस्त हुआ है। यह सफलता उस परमाणु ऊर्जा क्रांति की ओर इशारा करती है जिसे दुनिया लंबे समय से नजरअंदाज करती रही है।
शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ एप्लाइड फिजिक्स द्वारा गोबी रेगिस्तान में दो-मेगावाट थोरियम मोल्टेन सॉल्ट रिएक्टर (TMSR) का निर्माण किया गया है। यह विश्व का पहला ऐसा सिस्टम है जिसने थोरियम को एक व्यवहार्य परमाणु ईंधन के रूप में सफलतापूर्वक सिद्ध किया है। इस परियोजना की जड़ें 1960 के दशक के अमेरिकी प्रयोगों से जुड़ी हैं, जब वैज्ञानिकों ने मोल्टेन सॉल्ट रिएक्टर की अवधारणा का परीक्षण किया था, लेकिन शीत युद्ध की प्राथमिकताओं के कारण इसे छोड़ दिया गया था।
परियोजना के प्रमुख वैज्ञानिक, जू होंगजिया के अनुसार, चीन इस ‘भूले हुए सपने’ का ‘उचित उत्तराधिकारी’ है। उन्होंने बताया कि उनकी टीम ने डीक्लासिफाइड अमेरिकी दस्तावेजों का गहन अध्ययन किया और फिर सिद्धांत को वास्तविकता में बदला। अब चीन एक 10-मेगावाट रिएक्टर विकसित कर रहा है जो बड़े पैमाने पर बिजली पैदा करेगा।
TMSR की सबसे बड़ी खूबी यह है कि इसे ठंडा करने के लिए पानी की आवश्यकता नहीं होती है, जो इसे पानी की कमी वाले शुष्क क्षेत्रों के लिए बेहद उपयुक्त बनाता है। यह पारंपरिक यूरेनियम-आधारित रिएक्टरों से कई मायनों में बेहतर है, जो न केवल दुर्लभ हैं बल्कि खनन के दौरान पर्यावरण को भी भारी नुकसान पहुंचाते हैं और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।
थोरियम, जो पृथ्वी पर यूरेनियम से तीन से चार गुना अधिक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है, कम रेडियोधर्मी है और कम मात्रा में खतरनाक कचरा पैदा करता है। यह स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के लिए एक टिकाऊ विकल्प प्रदान करता है।
यह उपलब्धि चीन को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगी और वैश्विक ऊर्जा बाजार में महत्वपूर्ण बदलाव लाएगी। चीन की यह थोरियम-आधारित परमाणु ऊर्जा परियोजना न केवल एक तकनीकी चमत्कार है, बल्कि यह एक ऐसे भविष्य की ओर संकेत करती है जहाँ स्वच्छ और प्रचुर मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध होगी।
