यूक्रेन में जारी युद्ध ने यूरोप को अपनी रक्षा तैयारियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है। रूस की बढ़ती सैन्य गतिविधियों और संभावित खतरों के मद्देनजर, फिनलैंड और पोलैंड जैसी सीमावर्ती यूरोपीय राष्ट्र अब एक प्राचीन और प्रभावी रक्षा रणनीति को अपना रहे हैं – ‘पीट लैंड’ या दलदली भूमि का निर्माण। यह रणनीति न केवल सीमाओं को सुरक्षित बनाएगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी सहायक होगी।
यह विचार तब ज़ोर पकड़ने लगा जब यूक्रेन ने युद्ध की शुरुआत में अपने क्षेत्र को बचाने के लिए बांधों को तोड़कर बड़े पैमाने पर दलदल बना दिए थे। इस ‘पीट लैंड डिफेंस सिस्टम’ ने रूसी सैनिकों की प्रगति को धीमा कर दिया था, क्योंकि दलदली भूभाग पैदल सेना, बख्तरबंद वाहनों और भारी तोपखाने के लिए एक दुर्गम बाधा साबित हुआ। अब फिनलैंड, जिसकी रूस के साथ 1,500 किलोमीटर की सीमा है, और पोलैंड, जो बेलारूस और रूस से सटा है, इसी पद्धति को अपना रहे हैं।
पीट लैंड्स प्राकृतिक रूप से सदियों से बनते हैं, जहाँ पानी जमा होने और ऑक्सीजन की कमी के कारण मृत वनस्पति धीरे-धीरे एक मोटी, स्पंजी परत में बदल जाती है। यह परत ज़मीन को अस्थिर और पार करने में बेहद मुश्किल बना देती है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भी, पूर्वी यूरोप के दलदली इलाकों ने जर्मन सेना को भारी नुकसान पहुंचाया था। सैनिकों और भारी उपकरणों को कीचड़ में फंसने और रसद की समस्याओं का सामना करना पड़ा था, जिससे कई सैन्य अभियान विफल हो गए।
आज, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से, इन प्राकृतिक बाधाओं को कृत्रिम रूप से भी बनाया और पुनर्जीवित किया जा रहा है। जर्मनी, स्कॉटलैंड और इंडोनेशिया जैसे देश भी पीट लैंड बहाली परियोजनाओं में शामिल हैं। इन परियोजनाओं का दोहरा लाभ है: पहला, यह रणनीतिक रूप से रक्षा को मजबूत करता है, और दूसरा, यह पर्यावरण के लिए फायदेमंद है। पुनर्जीवित पीट लैंड कार्बन उत्सर्जन को कम करने, बाढ़ नियंत्रण में मदद करने और जल संसाधनों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
यूरोप के कई हिस्सों में, विशेष रूप से 18वीं और 19वीं शताब्दी में, कृषि और शहरीकरण के लिए इन दलदली भूमि को सुखा दिया गया था। हालांकि इससे उपजाऊ भूमि का निर्माण हुआ, लेकिन इसने पारिस्थितिक संतुलन को बिगाड़ दिया और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को बढ़ाया। अब, फिनलैंड और पोलैंड इस ऐतिहासिक गलती को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। वे अपनी सीमाओं के पास पुरानी आर्द्रभूमियों को फिर से जीवित कर रहे हैं ताकि वे एक प्राकृतिक रक्षा कवच के रूप में काम कर सकें।
फिनलैंड अपने पूर्वी सीमावर्ती इलाकों की पहचान कर रहा है जहाँ सूखे दलदलों को फिर से पानी से भरकर पुनर्जीवित किया जा सकता है। वहीं, पोलैंड अगले कुछ दशकों में अपनी पूर्वी सीमा पर दलदली भूमि की मात्रा को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
यह नई-पुरानी रक्षा रणनीति यूरोपीय देशों के लिए ‘दो पंथ एक काज’ साबित हो रही है। एक ओर, यह रूस जैसे संभावित खतरों के सामने सुरक्षा की एक अतिरिक्त परत प्रदान करती है, और दूसरी ओर, यह जलवायु परिवर्तन से निपटने में एक महत्वपूर्ण योगदान देती है। दलदली भूमि न केवल एक प्राकृतिक बाधा हैं, बल्कि ये कार्बन सिंक के रूप में भी काम करती हैं, जिससे इन क्षेत्रों का पर्यावरणीय महत्व बढ़ जाता है।
स्पष्ट है कि 21वीं सदी में भी, प्रकृति की अपनी शक्तियों का उपयोग करके प्रभावी रक्षा प्रणालियाँ विकसित की जा सकती हैं, और यूरोप इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है।
