राजधानी दिल्ली एक बार फिर सर्दियों के घने स्मॉग की गिरफ्त में है, जहाँ पराली जलाने और विभिन्न स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन ने हवा की गुणवत्ता को खतरनाक स्तर तक पहुँचा दिया है। यह स्थिति चिंताजनक है, खासकर तब जब चीन की राजधानी बीजिंग, जो कभी इसी समस्या से जूझ रही थी, ने बड़े नीतिगत हस्तक्षेप और भारी वित्तीय निवेश के माध्यम से अपनी हवा को काफी हद तक सुधारा है। अब चीन भारत को दिल्ली के जहरीले वायु प्रदूषण से निपटने में मदद के लिए अपना अनुभव साझा करने की पेशकश कर रहा है।
**बीजिंग का सफल वायु प्रदूषण नियंत्रण:**
लगभग एक दशक पहले, बीजिंग की हवा इतनी जहरीली थी कि इसे ‘स्मॉग कैपिटल’ कहा जाने लगा था। स्थिति इतनी गंभीर थी कि सैटेलाइट डेटा में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का स्तर बहुत ऊँचा पाया गया, जो श्वसन संबंधी गंभीर बीमारियों और असमय मौतों का कारण बन रहा था। इस गंभीर समस्या का सामना करने के लिए, चीन ने 2013 में एक व्यापक पांच-वर्षीय कार्य योजना लागू की। इसमें सड़कों से प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को हटाना, उद्योगों के लिए सख्त उत्सर्जन मानक तय करना और उन्हें बंद करना शामिल था। साथ ही, इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा दिया गया, सार्वजनिक परिवहन, विशेष रूप से बाइक-शेयरिंग को प्रोत्साहित किया गया, और भारी मालवाहक ट्रकों को शहरी क्षेत्रों से बाहर निर्देशित किया गया। इस परिवर्तनकारी पहल के लिए चीन सरकार ने कथित तौर पर 270 अरब डॉलर का भारी निवेश किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के साथ-साथ सतत विकास को सुनिश्चित करना था।
**वायु गुणवत्ता में अभूतपूर्व सुधार:**
एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट, शिकागो के आंकड़ों के अनुसार, बीजिंग की वायु गुणवत्ता में 2013 से 2021 के बीच 42.3% की उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। इस सफलता को लगातार निगरानी, कठोर नियमों के लागू होने और पर्याप्त सरकारी फंडिंग का परिणाम माना जाता है। बीजिंग की इस सफलता का वैश्विक वायु गुणवत्ता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा।
**ग्रीन फाइनेंस का प्रभावी उपयोग:**
विश्व बैंक के अनुसार, चीन की ‘इनोवेटिव फाइनेंसिंग फॉर एयर पोल्यूशन कंट्रोल इन द जिंग जिन जी रीजन’ एक महत्वपूर्ण मॉडल साबित हुई। इस पहल ने ग्रीन फाइनेंस को ऊर्जा नीतियों के साथ जोड़ा और ‘प्रोग्राम फॉर रिजल्ट्स’ प्रारूप का उपयोग किया, जिसे वायु प्रदूषण नियंत्रण कार्य योजना और 13वीं पंचवर्षीय योजना के साथ संरेखित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य ऊर्जा दक्षता में सुधार और स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देकर प्रदूषण को कम करना था।
**दिल्ली के लिए प्रासंगिक सीख:**
बीजिंग के अनुभव से यह स्पष्ट है कि मजबूत सरकारी इच्छाशक्ति, एक एकीकृत दृष्टिकोण और पर्याप्त संसाधन महत्वपूर्ण हैं। हालाँकि भारत के पास चीन जैसी वित्तीय क्षमता नहीं है, फिर भी 2019 में शुरू किया गया ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका लक्ष्य 2024 तक पार्टिकुलेट प्रदूषण को 20-30% तक कम करना है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दिल्ली और बीजिंग दोनों के लिए क्षेत्रीय समन्वय आवश्यक है। दिल्ली में सर्दियों के स्मॉग का एक बड़ा हिस्सा पड़ोसी राज्यों से आने वाले पराली के धुएं के कारण होता है। इस समस्या को हल करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच प्रभावी समन्वय की तत्काल आवश्यकता है।
**चीन का सहयोग का प्रस्ताव:**
भारत के लिए एक सकारात्मक संकेत यह है कि चीन ने अपनी विशेषज्ञता साझा करने की इच्छा जताई है। भारतीय दूतावास में चीनी प्रवक्ता ने कहा है कि चीन ने भी ऐसे ही हालात का सामना किया है और वे भारत के साथ अपने ‘नीले आसमान’ की यात्रा साझा करने को तैयार हैं। यह दर्शाता है कि चीन अपने सफल मॉडल के माध्यम से भारत की मदद कर सकता है।
