पाकिस्तान में संचालित मदरसों की शिक्षा प्रणाली पर एक हालिया रिपोर्ट ने गंभीर सवाल उठाए हैं। रिपोर्ट के अनुसार, ये संस्थान जहां समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को धार्मिक शिक्षा और आश्रय प्रदान करते हैं, वहीं दूसरी ओर ये कट्टरपंथी विचारधाराओं को पनपने, सामाजिक-आर्थिक खाई को चौड़ा करने और बाल दुर्व्यवहार जैसी गंभीर समस्याओं को बढ़ावा देने का माध्यम बन रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बात पर जोर दे रहा है कि पाकिस्तान शिक्षा क्षेत्र में अपनी जवाबदेही पूरी करे और उन संस्थानों पर लगाम लगाए जो चरमपंथियों को बढ़ावा देते हैं। पाकिस्तान में, मुख्यधारा की धर्मनिरपेक्ष शिक्षा और मदरसों के बीच का अंतर केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचनाओं की गहरी समस्याओं को भी दर्शाता है।
कई रिपोर्टों में मदरसों को ऐसी विचारधाराओं का गढ़ बताया गया है जो न केवल पाकिस्तान के राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध हैं, बल्कि वैश्विक शांति और सहिष्णुता के मूल्यों के भी खिलाफ हैं। 2005 में लाल मस्जिद का मामला इसका एक बड़ा उदाहरण था, जब मस्जिद से जुड़े मदरसे ने राज्य के खिलाफ मोर्चा खोला। इस घटना के बाद मदरसों को ‘जिहाद का कारखाना’ कहा जाने लगा और पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ जैसे नेताओं को भी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा।
रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ के हालिया बयान, जिसमें उन्होंने मदरसों के छात्रों को ‘रक्षा की दूसरी पंक्ति’ बताया, ने इस चिंता को और बढ़ाया है। यह बयान इस धारणा को पुष्ट करता है कि पाकिस्तान की व्यवस्था में मदरसों को कट्टरपंथ को बढ़ावा देने वाले एक महत्वपूर्ण तंत्र के रूप में देखा जाता है। यह केवल एक शैक्षणिक संस्थान न रहकर, चरमपंथी विचारों के प्रसार का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं।
रिपोर्ट यह भी रेखांकित करती है कि मदरसों का पाठ्यक्रम मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा पर केंद्रित है, जिसमें गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी जैसे आधुनिक विषयों को बहुत कम महत्व दिया जाता है। यह छात्रों को मुख्यधारा की अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आवश्यक कौशल से वंचित करता है, जिससे सामाजिक असमानता और बढ़ती है।
इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि मदरसों में बच्चों के साथ यौन शोषण और दुर्व्यवहार की कई घटनाएं सामने आई हैं। गरीब परिवारों के बच्चे, जिन्हें उनके माता-पिता सुरक्षित भविष्य की उम्मीद में मदरसों में भेजते हैं, वे अक्सर शिक्षकों या मौलवियों द्वारा शोषण का शिकार होते हैं। यह दुखद है कि कई मदरसे इन अपराधों को छिपाने का प्रयास करते हैं, और समाज की चुप्पी इस समस्या को लगातार जीवित रखती है।
 
									 
					