अमेरिका ने रूस के ऊर्जा क्षेत्र को निशाना बनाते हुए उसके दो प्रमुख तेल दिग्गजों, रोसनेफ्ट और लुकोइल, पर नए प्रतिबंध लगाए हैं। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इन कड़े कदमों का ऐलान करते हुए बुडापेस्ट में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ अपनी प्रस्तावित मुलाकात को भी स्थगित कर दिया है। यह निर्णय दोनों देशों के बीच बिगड़ते संबंधों की ओर इशारा करता है।
ट्रंप ने अपनी इस निराशा को व्यक्त किया कि पुतिन के साथ बातचीत से अब तक कोई ठोस परिणाम नहीं निकला है, भले ही मुलाकातें सौहार्दपूर्ण रही हों। प्रशासन में कूटनीतिक समाधान की धीमी गति को लेकर चिंता साफ झलक रही है, जिसके चलते अब सीधा दबाव रूसी ऊर्जा कंपनियों पर डाला जा रहा है।
यह घटनाक्रम इस पृष्ठभूमि में हुआ है जब अगस्त में पुतिन की अलास्का यात्रा ने दोनों नेताओं के बीच व्यक्तिगत संबंधों के माध्यम से शांति स्थापित करने की आशा जगाई थी। ट्रंप को लगा था कि आपसी संवाद से एक नया कूटनीतिक रास्ता खुल सकता है। हालांकि, इस बीच यूक्रेन और उसके यूरोपीय सहयोगियों ने चिंता जताई थी कि कहीं इस प्रक्रिया में यूक्रेन की सुरक्षा से समझौता न हो जाए।
अलास्का की शिखर बैठक बेनतीजा रही और पुतिन ने युद्ध के संबंध में अपने रुख में कोई नरमी नहीं दिखाई। यूक्रेन अभी भी रूसी हमलों से जूझ रहा है और अपनी पूर्ण सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले किसी समाधान की राह देख रहा है।
इसके समानांतर, अमेरिकी अधिकारी यूक्रेन को सैन्य सहायता पहुंचाने के विकल्पों पर विचार करते रहे हैं। एक संभावित योजना के तहत कीव को टॉmahawk मिसाइलें देने पर भी चर्चा हुई। राष्ट्रपति ट्रंप ने रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों के भविष्य को लेकर कुछ लचीलेपन के संकेत दिए थे। अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ महत्वपूर्ण वार्ताएं की थीं, लेकिन कोई बड़ी सफलता हाथ नहीं लगी। मॉस्को ने कूटनीतिक समाधान के लिए अपनी राजनीतिक शर्तों को सामने रखा, पर वे भी सिरे नहीं चढ़ीं।
अब वाशिंगटन ने प्रतिबंधों को अपना मुख्य हथियार बनाया है। यूरोप ने भी रूसी एलएनजी के आयात पर रोक लगा दी है। मॉस्को इन पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर और ऊर्जा क्षेत्र को विकासोन्मुख बता रहा है।
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने रूस पर और कड़े कदम उठाने की मांग की है। देश कड़ाके की सर्दियों का सामना करने के लिए तैयार है, जबकि बिजली संयंत्रों पर रूसी हमले जारी हैं। ऐसे में, अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का कितना असर होगा, यह देखना बाकी है।
भारत, जो अपने तेल आयात के लिए रूस पर काफी हद तक निर्भर है, अमेरिका की इस नई रणनीति पर बारीकी से नजर रख रहा है। इन प्रतिबंधों से तेल आपूर्ति बाधित हो सकती है, जिससे भारत के अमेरिकी व्यापार संबंधों पर भी असर पड़ सकता है। नई दिल्ली संभावित मूल्य वृद्धि से निपटने के लिए वैकल्पिक स्रोतों, जैसे पश्चिम एशिया, अफ्रीका और अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने पर विचार कर सकती है।
फिलहाल, रूस-यूक्रेन युद्ध का अंत नजर नहीं आ रहा है और कूटनीतिक प्रयास निष्फल साबित हो रहे हैं। वाशिंगटन मॉस्को पर दबाव डालने के लिए नए तरीके खोज रहा है, जबकि कीव एक ऐसे निर्णायक मोड़ का इंतजार कर रहा है जो स्थायी शांति की ओर ले जाए।
