परमाणु युद्ध की चिंता छोड़िए! 21वीं सदी की असली लड़ाई सोने के मैदान में लड़ी जाएगी, और चीन इस खेल में अमेरिका को धूल चटाने के लिए तैयार है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने सोने को डॉलर के वर्चस्व को तोड़ने वाले सबसे बड़े हथियार में बदल दिया है। यह ‘गोल्ड बॉम्ब’ अमेरिका की आर्थिक शक्ति को जड़ से हिलाने की क्षमता रखता है।
अमेरिका डॉलर की ताकत के नशे में चूर है, जबकि चीन एक ऐसे वित्तीय हथियार को सक्रिय करने की कगार पर है जो पूरी वैश्विक व्यवस्था को बदल सकता है। चीन का लक्ष्य अमेरिका के व्यापार और टैरिफ पर एकतरफा नियंत्रण को समाप्त करना है, और इसके लिए वह सोने को एक विनाशकारी हथियार के रूप में प्रयोग कर रहा है।
**डॉलर के वर्चस्व को चुनौती: सोने का नया रूप**
डॉलर सिर्फ अमेरिकी मुद्रा नहीं, बल्कि वैश्विक मंच पर अमेरिका की सर्वोच्चता का प्रतीक है। चीन इस प्रतीक को ध्वस्त करने के लिए सोने को एक शक्तिशाली हथियार में परिवर्तित कर रहा है। यह एक ऐसी रणनीति है जिसने दुनिया को हैरान कर दिया है।
**जिनपिंग की मास्टरस्ट्रोक: तीन-स्तरीय स्वर्ण नीति**
अमेरिकी डॉलर के वैश्विक प्रभुत्व को खत्म करने और ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ जैसे नारों को नाकाम करने के लिए, चीन ने एक चालाक, तीन-स्तरीय स्वर्ण नीति अपनाई है। यह नीति वैश्विक वित्तीय परिदृश्य को मौलिक रूप से बदलने के लिए बनाई गई है।
**पहला कदम: अमेरिकी बॉन्ड से दूरी, सोने का भंडारण**
चीन धीरे-धीरे अमेरिकी ट्रेजरी बॉन्ड की बिक्री कर रहा है और अपने स्वर्ण भंडार को तेजी से बढ़ा रहा है। यह दोहरी कार्रवाई न केवल डॉलर पर निर्भरता कम करती है, बल्कि अमेरिका की वित्तीय पकड़ को भी कमजोर करती है। यह चीन की आर्थिक आक्रामकता का पहला चरण है।
**दूसरा कदम: अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण भंडारण का नया केंद्र**
शंघाई गोल्ड एक्सचेंज के माध्यम से, चीन अब दुनिया भर के देशों को अपना सोना सुरक्षित रखने का अवसर दे रहा है। पहले यह विशेषाधिकार केवल अमेरिका के पास था, जो डॉलर को मजबूती देता था। अब, जब अन्य देश चीन पर भरोसा कर रहे हैं, तो युआन की स्थिति मजबूत हो रही है और डॉलर-आधारित प्रणाली पर भारी दबाव पड़ रहा है।
**तीसरा कदम: BRICS के साथ गोल्ड-आधारित प्रणाली**
चीन न केवल अपने स्वर्ण व्यापार को मजबूत कर रहा है, बल्कि BRICS देशों के साथ एक स्वर्ण-समर्थित भुगतान प्रणाली विकसित करने की योजना बना रहा है। इस प्रणाली का उद्देश्य डॉलर की भूमिका को पूरी तरह से खत्म करना है, जिससे अमेरिका की वित्तीय शक्ति बेकार हो जाएगी।
यह सिर्फ आर्थिक होड़ नहीं, बल्कि एक ‘आर्थिक युद्ध’ है। इस युद्ध में सोना परमाणु हथियारों से भी ज्यादा घातक साबित हो रहा है, और चीन ने अपना निशाना अमेरिका के आर्थिक दिल पर साधा है।