ईरान पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा पुनः लागू किए गए प्रतिबंधों ने देश की अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। इस बीच, सत्ताधारी दल के भीतर कड़े रुख के बीच आंतरिक राजनीतिक मतभेद और सत्ता संघर्ष तेज हो गया है। फ्रांस, जर्मनी और यूके के नेतृत्व वाले यूरोपीय देशों द्वारा शुरू की गई इस प्रतिबंध प्रक्रिया को 2015 के परमाणु समझौते के ‘स्नैपबैक’ प्रावधान के तहत लागू किया गया है, जो तेहरान के साथ हुई असफल वार्ता का परिणाम है। ईरान ने किसी भी समझौते को स्वीकार करने से साफ इंकार कर दिया है और पश्चिमी देशों की मांगों को अपनी संप्रभुता पर हमला करार दिया है।
देश में मुद्रास्फीति 40% के आंकड़े को पार कर चुकी है, और ईरानी अर्थव्यवस्था इन प्रतिबंधों के कारण अत्यधिक दबाव में है। जनता के बीच असंतोष बढ़ रहा है, और सरकार आलोचनाओं को दबाने के लिए सक्रिय रूप से नीतियां बना रही है। वहीं, सत्ता के गलियारों में गुटबाजी और खींचतान जारी है।
सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने अपने बयान में अमेरिका के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने कहा कि ईरान किसी भी बाहरी दबाव के आगे नहीं झुकेगा और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के मध्य पूर्व दौरे को लेकर भी उन्होंने तीखी टिप्पणी की। ईरान के शीर्ष सैन्य अधिकारियों ने हाल ही में इजरायल के साथ हुए 12 दिवसीय युद्ध के बाद देश की सैन्य क्षमता में आई मजबूती का दावा किया है। इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के प्रमुख, मोहम्मद पाकपुर ने चेतावनी दी है कि भविष्य में ईरान की प्रतिक्रिया और भी अधिक निर्णायक होगी।
सरकार ने राष्ट्रवादी भावनाएं भड़काने के लिए देश भर में प्रचार अभियान चलाया है। प्रमुख शहरों में वीर ईरानी नायकों और ऐतिहासिक विजयों को दर्शाने वाली मूर्तियां और होर्डिंग्स लगाई गई हैं। इस्फ़हान में एक प्रसिद्ध पौराणिक नायक रुस्तम की विशाल प्रतिमा का उद्घाटन किया गया, जबकि तेहरान में रोमन सम्राटों पर फारसी विजय और मिसाइल हमलों को दर्शाने वाले दृश्य प्रदर्शित किए गए।
आम नागरिकों को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है, और ईरानी मुद्रा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपने निम्नतम स्तर के करीब बनी हुई है। ईरान ने अमेरिका के साथ सीधे बातचीत को फिर से खारिज कर दिया है। इसके अलावा, ईरान प्रतिबंधों के कार्यान्वयन को लेकर चीन और रूस के साथ भी मतभेद में है, जिन्होंने तर्क दिया है कि 2015 के समझौते के तहत कुछ प्रतिबंध अब समाप्त हो चुके हैं। देश में इंटरनेट पर कड़े प्रतिबंध लागू हैं, और सोशल मीडिया प्लेटफार्मों तक पहुंच अवरुद्ध है। राष्ट्रपति मसूद पेज़ेशकियान ने हाल ही में इजरायल के साथ हुए युद्ध को इन डिजिटल प्रतिबंधों को हटाने में देरी का कारण बताया है, लेकिन कोई निश्चित समय-सीमा नहीं दी है।
ऊर्जा संकट भी लगातार बना हुआ है, जिससे नागरिकों को अतिरिक्त परेशानी हो रही है। सरकार जनता को शांत रखने के लिए ईंधन पर सब्सिडी दे रही है, हालांकि कीमतों में बढ़ोतरी की अफवाहें लगातार फैल रही हैं। हाल ही में, सरकार ने आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने संबंधी संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन को स्वीकार किया है। इस कदम का कट्टरपंथियों ने विरोध किया, जबकि समर्थकों का मानना है कि यह वैश्विक वित्तीय मानकों को पूरा करने और अलगाव से बचने के लिए आवश्यक था।
सत्ताधारी हलकों में भी आंतरिक प्रतिद्वंद्विता देखने को मिल रही है। अली शामखानी, जो सर्वोच्च नेता के सलाहकार और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख हैं, हाल ही में एक विवाद का हिस्सा बने जब उनकी बेटी का एक वीडियो बिना हिजाब के वायरल हुआ। इस घटना ने ईरान के नेताओं के पाखंड पर सवाल खड़े किए हैं। पूर्व राष्ट्रपति हसन रूहानी पर 2015 के परमाणु समझौते की विफलता और देश की वर्तमान आर्थिक दुर्दशा को लेकर आलोचनाएं हो रही हैं। यूके की अदालतों ने नेशनल ईरानी ऑयल कंपनी के लंदन स्थित मुख्यालय को जब्त करने के आदेश को बरकरार रखा है, जो 2001 के एक असफल गैस सौदे से संबंधित है। रूहानी ने ऑनलाइन माध्यमों से सरकार के कुछ नियमों पर असहमति जताई है, संभवतः हिजाब कानूनों का जिक्र करते हुए। ईरान के सैन्य सलाहकार, मेजर जनरल याह्या रहीम सफावी ने हाल ही में मृत्यु को लेकर एक विवादास्पद बयान दिया, जिसने पूर्व राष्ट्रपति अकबर हाशेमी रफसंजानी के परिवार को नाराज कर दिया।