सऊदी अरब ने ‘कफाला’ नामक विवादास्पद प्रायोजन प्रणाली को समाप्त कर दिया है, जो दशकों से लाखों प्रवासी श्रमिकों के जीवन को नियंत्रित कर रही थी। यह प्रणाली, जिसमें श्रमिकों का कानूनी दर्जा उनके नियोक्ता से जुड़ा होता है, ने उन्हें बंधुआ मजदूरों जैसा बना दिया था। इस ऐतिहासिक फैसले से सऊदी अरब में काम करने वाले लगभग 13 मिलियन विदेशी श्रमिकों को लाभ होगा, जिनमें 2.5 मिलियन भारतीय शामिल हैं।
कफाला व्यवस्था, जो 1950 के दशक में शुरू हुई थी, का उद्देश्य विदेशी श्रमिकों के प्रवाह को नियंत्रित करना था। हालांकि, समय के साथ यह श्रमिकों के शोषण का जरिया बन गई। इसके तहत, नियोक्ता श्रमिकों के पासपोर्ट रख सकते थे, उन्हें नौकरी बदलने या देश छोड़ने की अनुमति देने से इनकार कर सकते थे, और वेतन रोकने या अत्यधिक काम कराने जैसे दुर्व्यवहार के लिए स्वतंत्र थे। कई भारतीय श्रमिकों की कहानियाँ सामने आई हैं, जिनमें उन्हें बंधक बनाने, मारपीट करने और अमानवीय परिस्थितियों में रखने का आरोप है।
उदाहरण के लिए, कर्नाटक की एक नर्स को आकर्षक वेतन का वादा करके सऊदी अरब लाया गया था, लेकिन उसे गंभीर शोषण का सामना करना पड़ा। उसे महीनों तक भूखा रखा गया, अत्यधिक काम कराया गया और हिंसा की धमकी दी गई। भारतीय दूतावास के हस्तक्षेप के बाद ही वह अपनी कैद से मुक्त हो सकी। इसी तरह, एक अन्य भारतीय श्रमिक, महावीर यादव, को उसके नियोक्ता ने वर्षों तक प्रताड़ित किया, उसका वेतन रोका और पासपोर्ट जब्त कर लिया, जिससे उसकी मौत हो गई।
मानवाधिकार संगठनों ने लंबे समय से कफाला प्रणाली को दासता के समान बताया है। इस प्रणाली ने श्रमिकों को अपने नियोक्ताओं पर पूरी तरह निर्भर बना दिया था, जिससे उनके पास कानूनी मदद मांगने या उत्पीड़न से बचने का कोई रास्ता नहीं था। सऊदी अरब का यह कदम अंतरराष्ट्रीय दबाव और अपनी छवि सुधारने की कोशिशों का नतीजा है। नए नियमों के तहत, श्रमिक अब स्वतंत्र रूप से नौकरी बदल सकते हैं और नियोक्ता की अनुमति के बिना देश छोड़ सकते हैं।
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि कफाला प्रणाली अभी भी अन्य खाड़ी देशों जैसे कतर, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन में विभिन्न रूपों में मौजूद है। इन देशों ने कुछ सुधार किए हैं, लेकिन मूल प्रणाली अभी भी प्रभावी है। सऊदी अरब का फैसला एक बड़ी जीत है, लेकिन सभी खाड़ी देशों में प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों की पूर्ण बहाली के लिए अभी लंबा सफर तय करना बाकी है। इस सुधार का सफल कार्यान्वयन महत्वपूर्ण होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कागज पर हुए बदलाव जमीनी हकीकत में बदलें।