13 अक्टूबर को जब इजरायल और हमास ने कैदियों का आदान-प्रदान किया, उस दिन को एक ऐतिहासिक पल बनना था। इसी बीच, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प इजरायल की संसद, क्नेट में पहुंचे। कैमरों की चकाचौंध और तालियों की गूंज के बीच, उन्होंने एक ऐसा भाषण दिया जिसे उन्होंने “नए मध्य पूर्व के ऐतिहासिक भोर” का नाम दिया।
ट्रम्प ने दावा किया, “यह केवल एक युद्ध का अंत नहीं, बल्कि आतंक और मृत्यु के युग का अंत है।” उन्होंने इसे “विश्वास, आशा और ईश्वर के युग की शुरुआत” बताया। उनके शब्दों ने इजरायल के सांसदों के बीच मिश्रित प्रतिक्रियाएं छोड़ीं – आधा विस्मय, आधा संदेह।
युद्धविराम, बंधकों की रिहाई और चमत्कारों का ज़िक्र करते हुए, ट्रम्प ने बताया कि कैसे हमास ने 20 इजरायली बंधकों को मुक्त किया और इजरायल ने 250 फिलिस्तीनी कैदियों को रिहा किया। लगभग 1,700 गाजा निवासियों की घर वापसी भी इसी का हिस्सा थी। ट्रम्प ने इसे अपनी “20-सूत्रीय योजना” का परिणाम बताया, एक ऐसी योजना जिसकी व्यापकता के साथ-साथ अस्पष्टता भी उतनी ही थी।
इस भाषण के बाद, ट्रम्प मिस्र में एक शांति शिखर सम्मेलन में शामिल हुए। उन्होंने वैश्विक नेताओं की मौजूदगी में अपनी “शांति योजना” के पहले चरण पर हस्ताक्षर किए। इस योजना में गाजा में एक स्थिरीकरण बल की तैनाती, हमास द्वारा फिलिस्तीनी समिति को शासन सौंपना, और ट्रम्प व टोनी ब्लेयर के नेतृत्व में एक “शांति बोर्ड” का गठन शामिल था। यह सब एक बड़े कूटनीतिक और व्यक्तिगत उपलब्धि के प्रदर्शन जैसा लगा, जिसमें ट्रम्प ने अपनी टीम और इजरायल के नेताओं की प्रशंसा की।
हालांकि, उनके भाषण में किए गए कुछ दावों की हकीकत को परखना ज़रूरी है:
**’8 महीनों में 8 युद्ध समाप्त किए’**
यह एक ऐसा दावा था जिसने श्रोताओं को उत्साहित किया, लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग थी। ट्रम्प के युद्धविराम प्रयासों का प्रभाव विविध रहा। भारत-पाकिस्तान, आर्मेनिया-अजरबैजान और इजरायल-ईरान जैसे क्षेत्रों में उनकी मध्यस्थता का असर मिला-जुला रहा। अफ्रीका में, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और रवांडा के बीच उनकी कराई शांति संधि कुछ ही महीनों में टूट गई, जिससे सैकड़ों जानें गईं। कंबोडिया और थाईलैंड के बीच सीमा विवाद भी फिर से भड़क उठे। मिस्र और इथियोपिया के बीच नील नदी जल विवाद अनसुलझा रहा। विशेषज्ञों का मानना है कि यह दावा कूटनीति के पर्दे में छिपी एक अतिशयोक्ति है।
**’ईरान के परमाणु स्थलों पर 14 बम गिराए, तबाह कर दिए’**
यह दावे का सबसे विवादास्पद हिस्सा था। ट्रम्प ने जून में हुए एक गुप्त अमेरिकी सैन्य अभियान का जिक्र किया, जिसने ईरान की तीन परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाया था। उन्होंने दावा किया कि इन स्थलों को “पूरी तरह तबाह” कर दिया गया था और इसकी पुष्टि हो चुकी है। हालांकि, ऐसा कोई भी आधिकारिक सत्यापन मौजूद नहीं है। उपलब्ध उपग्रह चित्र और रिपोर्टें अस्पष्ट हैं। फर्डो में स्थित एक प्रमुख परमाणु सुविधा क्षतिग्रस्त हुई है, लेकिन पूरी तरह नष्ट नहीं हुई है।
**’ईरान परमाणु समझौता एक आपदा था’**
ट्रम्प ने ओबामा प्रशासन के दौरान हुए 2015 के ईरान परमाणु समझौते की कड़ी आलोचना की। उनका मानना था कि यह समझौता ईरान को परमाणु क्षमता हासिल करने में मदद कर रहा था। जबकि, अंतरराष्ट्रीय निरीक्षकों ने समझौते के दौरान ईरान के अनुपालन की पुष्टि की थी। इसने यूरेनियम संवर्धन को सीमित किया और ईरान को वैश्विक निरीक्षण के अधीन लाया। 2018 में ट्रम्प के इस समझौते से हटने के बाद, ईरान ने प्रतिबंधों के बावजूद अपनी परमाणु गतिविधियों को फिर से शुरू कर दिया। विशेषज्ञों के अनुसार, समझौते की विफलता का कारण उसका कार्यान्वयन न होना था, न कि समझौता स्वयं।
**’ओबामा-बिडेन ने इजरायल को नफरत की नजर से देखा’**
यह दावा इतिहासकारों और कई पूर्व अधिकारियों के लिए चौंकाने वाला था। उन्होंने तर्क दिया कि ओबामा और बिडेन दोनों प्रशासनों ने इजरायल को मजबूत सैन्य और कूटनीतिक समर्थन प्रदान किया। ओबामा के कार्यकाल में इजरायल को 10 वर्षों के लिए 38 बिलियन डॉलर की सबसे बड़ी सैन्य सहायता पैकेज मिली। बिडेन ने भी गाजा युद्ध के बाद 21.7 बिलियन डॉलर की सहायता के साथ इस समर्थन को जारी रखा, और संयुक्त राष्ट्र में कई युद्धविराम प्रस्तावों को वीटो किया।
**’ओबामा-बिडेन ने अब्राहम एकॉर्ड्स पर कोई काम नहीं किया’**
यह दावा भी तथ्यात्मक रूप से गलत था। अब्राहम एकॉर्ड्स, जो 2020 में हस्ताक्षरित हुए, ट्रम्प के कार्यकाल के अंतिम वर्ष में हुए थे। इन समझौतों ने इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, सूडान और मोरक्को के बीच संबंधों को सामान्य बनाया। बिडेन प्रशासन ने इन संबंधों को और विस्तारित करने का प्रयास किया, विशेष रूप से सऊदी अरब के साथ। हालांकि, 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले और उसके बाद गाजा में हुए विनाश ने इस प्रक्रिया को जटिल बना दिया। दो मिलियन से अधिक लोग बेघर हो गए और 68,000 से अधिक लोग मारे गए, जिससे शांति की राह और कठिन हो गई।
ट्रम्प क्नेट से मुस्कान बिखेरते हुए विदा हुए, “एक नए सिरे से विश्वास की दुनिया” का वादा करते हुए। लेकिन क्नेट के बाहर, विश्लेषकों ने उनके भाषण में प्रस्तुत आधे-सच और अप्रमाणित दावों का लेखा-जोखा किया। उनकी शब्दावली, ईश्वर में विश्वास से ओत-प्रोत, अक्सर जमीनी हकीकत से कोसों दूर थी। लेकिन उस क्षेत्र में जहाँ शांति की प्रबल इच्छा है, ऐसे आकर्षक वादे भी क्षणिक राहत प्रदान कर सकते हैं।