भारत सरकार ने अपनी बहुप्रतीक्षित सैटेलाइट-आधारित टोल कलेक्शन प्रणाली को फिलहाल होल्ड पर रख दिया है। सूत्रों के अनुसार, इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे मुख्य कारण डेटा गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताएं हैं। यह कदम इस बात का भी संकेत देता है कि भारत अमेरिकी जीपीएस, रूसी ग्लोनास, यूरोपीय गैलीलियो या चीनी BeiDou जैसे विदेशी सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम पर निर्भर नहीं रहना चाहता।
हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे अभियानों से वाहनों की ट्रैकिंग और उनकी लोकेशन मॉनिटरिंग में सुरक्षा खामियों का पता चला था, जिसके बाद सरकार अधिक सतर्क हो गई है।
परियोजना से जुड़े उच्च-स्तरीय सूत्रों का कहना है कि सैटेलाइट टोल लागू करने की योजना को पूरी तरह से रद्द नहीं किया गया है, बल्कि इसे कुछ समय के लिए टाला गया है। सरकार का स्पष्ट रुख है कि भविष्य में टोल कलेक्शन का काम केवल और केवल भारत के अपने स्वदेशी NavIC (Navigation with Indian Constellation) सैटेलाइट नेविगेशन सिस्टम के माध्यम से ही होना चाहिए।
फिलहाल, NavIC प्रणाली अभी तक पूरे देश में टोल की वसूली के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है। विभिन्न सरकारी विभागों के तकनीकी विशेषज्ञ इस प्रणाली को जल्द से जल्द परिचालन के लिए सक्षम बनाने में जुटे हुए हैं।
एक बड़ी चुनौती यह है कि सैटेलाइट किस तरह से भारतीय सड़कों पर दौड़ रहे वाहनों की सटीक और रियल-टाइम लोकेशन कैप्चर कर पाएंगे। अधिकारियों ने चिंता जताई है कि इस प्रणाली से आम नागरिकों की निजता का उल्लंघन हो सकता है, जो वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा माहौल में एक गंभीर मुद्दा है।
सुरक्षित टोल सिस्टम की दिशा में प्रगति जारी है। भले ही GNSS-आधारित प्रणाली का भविष्य अनिश्चित है, लेकिन सुरक्षित कार्यान्वयन के लिए गुप्त रूप से काम चल रहा है। सरकारी अधिकारी और तकनीकी विशेषज्ञ ऐसे तरीके खोज रहे हैं जिनसे नागरिकों की प्राइवेसी को सुरक्षित रखते हुए टोल कलेक्शन की प्रक्रिया को कुशल बनाया जा सके।
दिल्ली-जयपुर हाईवे पर किए गए शुरुआती परीक्षणों से यह साबित हुआ कि तकनीक काम कर सकती है, लेकिन उन्होंने यह भी दिखाया कि बड़े पैमाने पर लागू करने से पहले सुरक्षा और निजता के मुद्दों को सुलझाना कितना ज़रूरी है।
इसके साथ ही, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) देश भर में ‘फ्री-फ्लो’ टोल सिस्टम को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। गुजरात के चोर्यासी में ऐसी प्रणाली के लिए पहला टेंडर जारी किया गया है। इस नई तकनीक से वाहन बिना रुके टोल चुका सकेंगे, जिससे ट्रैफिक का सुचारू प्रवाह सुनिश्चित होगा और राजस्व भी बढ़ेगा।
अधिकारी इस बात पर ज़ोर देते हैं कि ये कदम तब तक के लिए उठाए जा रहे हैं जब तक NavIC प्रणाली पूरी तरह से तैयार नहीं हो जाती, जिसके बाद एक पूर्ण सैटेलाइट-आधारित टोल सिस्टम लॉन्च किया जा सकेगा। यह पूरा घटनाक्रम भारत की आत्मनिर्भरता और स्वदेशी प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। विदेशी सैटेलाइट पर निर्भरता कम करके, सरकार देश की महत्वपूर्ण अवसंरचना और नागरिकों की निजता दोनों को सुरक्षित रखना चाहती है। आने वाले महीनों में, तकनीकी टीमें परीक्षण और सुधार जारी रखेंगी ताकि सैटेलाइट टोल कार्यक्रम को सुरक्षित, कुशल और भारत के स्वायत्त परिवहन प्रबंधन के विजन के अनुरूप लॉन्च किया जा सके।