डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में H-1B वीज़ा में किए गए बदलावों को लेकर कानूनी लड़ाई शुरू हो गई है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीज़ा की फीस में भारी वृद्धि की, जिससे यह लगभग 88 लाख रुपये हो गई। इस फैसले के खिलाफ, विभिन्न संगठनों, जिनमें स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, धार्मिक संस्थान और शिक्षाविद शामिल हैं, ने अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उनका आरोप है कि यह कदम नियोक्ताओं, कर्मचारियों और सरकारी एजेंसियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है।
ट्रंप ने 19 सितंबर को एक आदेश जारी किया था, जिसके तहत नई फीस अनिवार्य की गई। उनका तर्क था कि H-1B वीज़ा कार्यक्रम का दुरुपयोग किया जा रहा है ताकि अमेरिकी कर्मचारियों की जगह सस्ते विदेशी श्रमिकों को लाया जा सके। दायर मुकदमे में कहा गया है कि यह कार्यक्रम अमेरिका में स्वास्थ्य सेवा कर्मियों, शिक्षकों और नवाचार के लिए ज़रूरी है। मुकदमे में इस आदेश को रद्द करने और पहले की स्थिति बहाल करने की मांग की गई है। आलोचकों का कहना है कि इससे अमेरिकी कंपनियों के लिए कुशल विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करना मुश्किल हो जाएगा। व्हाइट हाउस का कहना है कि यह कदम कानून के अनुरूप है और इसका उद्देश्य अमेरिकी वेतन को कम करने से रोकना है। H-1B कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों को प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में विदेशी विशेषज्ञों को लाने की अनुमति देता है।