सऊदी अरब, जो कभी तेल और धार्मिक स्थलों के लिए जाना जाता था, अब एक मजबूत सैन्य शक्ति के रूप में उभर रहा है। ग्लोबल फायरपावर 2025 की रैंकिंग में 24वें स्थान पर, सऊदी अरब ने अपनी सैन्य क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
हाल ही में पाकिस्तान के साथ हुए एक रक्षा समझौते ने क्षेत्रीय भू-राजनीति में हलचल मचा दी है, जिसमें दोनों देशों पर किसी भी एक पर हमले को संयुक्त हमला माना जाएगा। इस समझौते में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों के संभावित उपयोग का भी उल्लेख है, जिससे दक्षिण एशिया में सुरक्षा संतुलन में बदलाव आ सकता है।
सऊदी अरब ने अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भरता से हटकर एक स्वतंत्र रुख अपनाया है। अब उसके पास एक शक्तिशाली सेना और आधुनिक हथियारों का बड़ा जखीरा है। अमेरिका और यूरोप से हथियारों की खरीद के अलावा, उसने चीन के साथ भी रक्षा सहयोग बढ़ाया है, जिससे वह पश्चिम एशिया में अमेरिका और चीन दोनों के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया है।
सऊदी अरब के पास 2.57 लाख सक्रिय सैनिक और 1.5 लाख अर्धसैनिक जवान हैं। इसकी सेना में आर्मी, एयरफोर्स और नेवी शामिल हैं। उल्लेखनीय है कि सऊदी अरब के पास रिजर्व फोर्स नहीं है, जिसका मतलब है कि उसकी पूरी सैन्य शक्ति हमेशा तैनात रहती है।
रॉयल सऊदी एयर फोर्स (RSAF) के पास 1,000 से अधिक विमान हैं, जिनमें F-15E स्ट्राइक ईगल, टॉरनेडो IDS और यूरोफाइटर टाइफून जैसे आधुनिक लड़ाकू विमान शामिल हैं। इसके अलावा, 185 से अधिक हेलीकॉप्टर भी हैं, जो हवाई वर्चस्व स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सऊदी अरब की थल सेना भी खाड़ी क्षेत्र में सबसे मजबूत है, जिसमें 22,860 से अधिक हथियार शामिल हैं, जिनमें अब्राम्स टैंक और अन्य आधुनिक उपकरण शामिल हैं। अमेरिका से 177 आधुनिक M109A6 टैंकों का ऑर्डर दिया गया है, और नेशनल गार्ड के पास 156 सीज़र SPH ट्रक पहले से ही मौजूद हैं।
सऊदी नौसेना 62 युद्धपोतों के साथ विकास के दौर से गुजर रही है, जिसमें फ्रिगेट्स, कॉर्वेट्स और पेट्रोल शिप्स शामिल हैं। अमेरिका से खरीदे जा रहे चार मल्टी-मिशन वारशिप्स नौसेना को और मजबूत करेंगे, जो खाड़ी में रणनीतिक जलमार्गों की सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।