राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर लगाए गए भारी टैरिफ ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा कर दिया है। पूर्व बाइडेन प्रशासन के अधिकारियों का मानना है कि संबंधों को मजबूत किया जा सकता है, ताकि अमेरिका तकनीकी क्षेत्र में चीन से पीछे न रहे।
पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन और पूर्व उप विदेश मंत्री कर्ट एम. कैंपबेल ने एक लेख में लिखा कि अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी को दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त है, और इसने चीन की आक्रामक नीतियों को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका को अपने सहयोगियों को समझाना होगा कि ट्रम्प की नीतियाँ अक्सर सौदेबाजी की भूमिका को छुपाती हैं।
सुलिवन और कैंपबेल ने कहा कि टैरिफ, रूसी तेल की खरीद और पाकिस्तान के साथ तनाव ने अमेरिका-भारत संबंधों में गिरावट लाई है, जिससे वाशिंगटन एक महत्वपूर्ण सहयोगी खो सकता है।
उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी की हालिया बैठकों से संकेत मिलता है कि भारत अमेरिका के विरोधियों के करीब जा सकता है।
लेख में चेतावनी दी गई है कि भारत चीन और अमेरिका के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच फंसा हो सकता है।
दोनों देशों को एक नई और मजबूत रणनीति अपनानी चाहिए।
लेख में जॉर्ज बुश और मनमोहन सिंह के बीच परमाणु समझौते और बाइडेन-मोदी के बीच सहयोग का भी उल्लेख किया गया है।
सुलिवन और कैंपबेल ने कहा कि अमेरिका को भारत और पाकिस्तान के साथ संबंधों को अलग नहीं करना चाहिए। उनका मानना है कि अमेरिका को आतंकवाद को रोकने और पाकिस्तान में हथियारों के प्रसार को सीमित करने में दिलचस्पी है, लेकिन ये चिंताएँ भारत के साथ अमेरिका के दीर्घकालिक हितों से कम महत्वपूर्ण हैं।
ये टिप्पणियाँ ऐसे समय में आई हैं जब ट्रम्प ने हाल ही में भारत-पाक संघर्ष विराम का श्रेय लिया, जबकि भारत ने इसे खारिज कर दिया।
अमेरिका और पाकिस्तान के बीच हाल के दिनों में संबंध बेहतर हुए हैं।
लेख में सुझाव दिया गया है कि अमेरिका और भारत के बीच एक नई रणनीतिक साझेदारी स्थापित की जानी चाहिए, जो साझा सुरक्षा, समृद्धि और लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देगी।
इसके तहत, दोनों देशों को एआई, सेमीकंडक्टर्स, बायोटेक, क्वांटम टेक्नोलॉजी, स्वच्छ ऊर्जा, दूरसंचार और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों में तकनीकी साझेदारी पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक दस-वर्षीय योजना बनानी चाहिए।
लेखकों का मानना है कि ये क्षेत्र भविष्य में वैश्विक शक्ति संतुलन को निर्धारित करेंगे।