समुद्र के नीचे और ऊपर, क्या अब एक नई जंग शुरू हो गई है? चीन, दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती नौसेना, और अमेरिका, जो कई दशकों से समुद्री शक्ति का बादशाह रहा है। चीन की नौसेना का विस्तार अमेरिका के लिए एक सीधी चुनौती है। सवाल यह है कि क्या यह टकराव सिर्फ जहाजों तक सीमित रहेगा, या हिंद-प्रशांत क्षेत्र की राजनीति में बड़ा बदलाव आएगा?
अगर ये दोनों महाशक्तियाँ टकराती हैं, तो भारत और इंडो-पैसिफिक देशों पर इसका क्या असर होगा? आइए चीन और अमेरिका के बीच इस नौसैनिक प्रतिस्पर्धा की पूरी कहानी जानते हैं! भू-राजनीतिक जंग की पूरी कहानी और भारत के लिए इसका मतलब क्या है?
डालियान शिपयार्ड: चीनी नौसैनिक महत्वाकांक्षा का केंद्र
पीले सागर के तट पर स्थित डालियान का सुवोयुवान पार्क, चीन की नौसैनिक महत्वाकांक्षा का केंद्र बन गया है। यहाँ के विशाल शिपयार्ड हर महीने नए युद्धपोत और वाणिज्यिक जहाज तैयार करते हैं। वाशिंगटन के रणनीतिकारों के लिए, डालियान अब एक बढ़ते खतरे का प्रतीक है, क्योंकि चीन अपनी समुद्री ताकत को यहीं से लगातार मजबूत कर रहा है।
लंदन के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज के समुद्री मामलों के जानकार, निक चाइल्ड्स कहते हैं, “निर्माण का पैमाना अविश्वसनीय है। कुछ मामलों में तो हैरान करने वाला है। चीन की शिपबिल्डिंग क्षमता अमेरिका की कुल क्षमता का 200 गुना है।” इससे स्पष्ट है कि चीन न केवल संख्या में, बल्कि गति और तकनीक में भी आगे निकल रहा है।
वैश्विक व्यापार पर चीनी पकड़
चीन की समुद्री ताकत केवल युद्धपोतों तक सीमित नहीं है, बल्कि उसने वैश्विक व्यापार पर भी अपनी पकड़ मजबूत कर ली है। इस साल दुनिया के 60% से अधिक जहाजों के निर्माण का ऑर्डर चीन के शिपयार्ड्स को मिला है, जिससे चीन दुनिया का सबसे बड़ा शिपबिल्डिंग हब बन गया है। दुनिया के 10 सबसे व्यस्त बंदरगाहों में से 7 चीन के पास हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला की धड़कन बने हुए हैं। यह बढ़त चीन को न केवल आर्थिक, बल्कि रणनीतिक रूप से भी मजबूत बनाती है, जिससे वह वैश्विक समुद्री मार्गों पर अपनी शर्तें लागू कर सकता है।
चीनी नौसेना की ताकत और विस्तार की तेज रफ्तार
बीजिंग की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के साथ-साथ चीनी सेना का जहाजी बेड़ा भी लगातार बड़ा हो रहा है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में चीन ने न केवल दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना खड़ी कर दी है, बल्कि दक्षिण चीन सागर और उसके बाहर भी अपना दावा मज़बूती से पेश किया है। शी जिनपिंग के लिए समुद्री वर्चस्व “चाइना ड्रीम” का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह चाहते हैं कि चीन न केवल एशिया में, बल्कि पूरी दुनिया में समुद्री नियम तय करे। सवाल यह है कि क्या शी जिनपिंग वाकई लहरों की सवारी कर पाएंगे, या यह महत्वाकांक्षा दुनिया को नए टकराव की ओर ले जाएगी?
पिछले 15 वर्षों में चीन ने अपनी नौसेना को जिस गति से बढ़ाया है, वह हैरान करने वाला है। 2010 में चीन के पास लगभग 220 युद्धपोत थे। 2024 तक यह संख्या 370 से अधिक हो गई है। अमेरिकी रक्षा विभाग के अनुसार, अगले दस वर्षों में यह संख्या 475 तक पहुंच सकती है। चीन के पास अब 3 एयरक्राफ्ट कैरियर हैं: लियाओनिंग, शानदोंग और नवीनतम फुजियान, जो पूरी तरह से घरेलू तकनीक पर बनाया गया है।
चीनी नौसेना के विस्तार पर हाल ही में पीएलए नौसेना के रियर एडमिरल लुओ युआन ने कहा था, “चीन को अपने समुद्री हितों की रक्षा के लिए सबसे शक्तिशाली नौसेना चाहिए।” वहीं, अमेरिकी नौसेना प्रमुख एडमिरल लिसा फ्रेंचेटी ने पिछले महीने कहा था, “हम इंडो-पैसिफिक में किसी भी आक्रामकता का जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।”
चीन केवल जहाजों की संख्या ही नहीं बढ़ा रहा है, बल्कि उन्नत मिसाइल सिस्टम, ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस युद्धपोत भी शामिल कर रहा है। टाइप 055 डिस्ट्रॉयर, जो दुनिया के सबसे घातक युद्धपोतों में गिना जाता है, अब चीनी बेड़े की शान बन गया है।
अमेरिका बनाम चीन: तुलना और टकराव
जहां चीन अपनी नौसेना के विस्तार में सबसे आगे है, वहीं अमेरिका अभी भी प्रौद्योगिकी और अनुभव के मामले में आगे है। अमेरिका के पास 11 सुपरकैरियर हैं, जो इतनी बड़ी संख्या में किसी अन्य देश के पास नहीं हैं। लेकिन चीन की संख्या और उसकी आक्रामक कूटनीति ने अमेरिका को चिंतित कर दिया है।
2025 की शुरुआत में, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा था, “हम अपने सहयोगियों के साथ मिलकर इंडो-पैसिफिक में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करेंगे। चीन की एकतरफा कार्रवाई स्वीकार नहीं की जाएगी।”
हाल ही में, दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी और चीनी युद्धपोत आमने-सामने आ गए। दोनों देशों के बीच रेडियो पर तीखी बातचीत वायरल हुई। दरअसल, अमेरिका लगातार ‘फ्रीडम ऑफ नेविगेशन ऑपरेशन’ चला रहा है ताकि चीन के दावों को चुनौती दी जा सके।
2010 से अब तक: चीन का नेवल ग्रोथ और हाल के विवाद
2010 के बाद से, चीन ने हर साल औसतन 10-12 नए युद्धपोत लॉन्च किए हैं। 2016 में, दक्षिण चीन सागर पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने चीन के खिलाफ फैसला सुनाया, लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया।
2023-24 में, चीन ने पैरासेल और स्प्रैटली द्वीप समूह के आसपास अपनी सैन्य उपस्थिति और बढ़ा दी। फिलीपींस, वियतनाम और मलेशिया के साथ कई बार टकराव हुआ। मई 2025 में, चीन ने फिलीपींस के आपूर्ति जहाजों पर वाटर कैनन का इस्तेमाल किया, जिसकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हुई।
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा था, “दक्षिण चीन सागर पर चीन का संप्रभु अधिकार ऐतिहासिक और कानूनी रूप से सही है।”
इंडो-पैसिफिक की घटनाएं और भारत पर असर
इंडो-पैसिफिक अब दुनिया का सबसे बड़ा भू-राजनीतिक हॉटस्पॉट बन गया है। चीन की आक्रामकता से जापान, ऑस्ट्रेलिया, फिलीपींस और भारत सभी सतर्क हैं। इंडो-पैसिफिक में हर साल 50% से अधिक वैश्विक व्यापार होता है, जिसमें भारत का भी बड़ा हिस्सा है।
भारत के पूर्व नौसेना प्रमुख, एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा था, “हिंद महासागर में भारत की उपस्थिति और ताकत, चीन की हरकतों पर नज़र रखने के लिए पर्याप्त है। लेकिन सतर्क रहना ज़रूरी है।”
भारत की रणनीति, क्वाड की भूमिका और नौसेना की तैयारी
भारत ने अपनी नौसेना को आधुनिक बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। 2024 में आईएनएस विक्रांत के कमीशन के बाद, भारत के पास अब दो एयरक्राफ्ट कैरियर हैं। P-8I मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट, स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन और ब्रह्मोस मिसाइलों से भारतीय नौसेना की ताकत बढ़ी है।
क्वाड (QUAD), यानी भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया का गठबंधन, चीन का मुकाबला करने के लिए सक्रिय है। जून 2025 में क्वाड ने ‘मालाबार नौसैनिक अभ्यास’ किया, जिसमें सभी देशों की नौसेनाओं ने भाग लिया। इससे चीन को कड़ा संदेश गया कि इंडो-पैसिफिक में किसी एक देश का दबदबा नहीं चलेगा।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने हाल ही में कहा था, “भारत किसी भी बाहरी दबाव में नहीं झुकेगा। हमारी नौसेना हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है।”