भारत और कनाडा ने हाल ही में नए उच्चायुक्तों की नियुक्ति की घोषणा की है, जिससे दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों में सुधार का संकेत मिला है। यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब दोनों देश खालिस्तान विवाद और राजनीतिक तनाव से जूझ रहे थे।
यह नियुक्ति केवल प्रतीकात्मक नहीं है; यह इस बात का संकेत है कि दोनों देश अब अतीत की गलतफहमियों को दूर करने और एक नई साझेदारी बनाने के लिए तैयार हैं। ऐसा माना जा रहा है कि ट्रूडो के नेतृत्व के बाद, दोनों देश अब व्यावहारिक मुद्दों और साझा हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
2023 में कनाडा के पूर्व प्रधान मंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की कथित भूमिका का आरोप लगाया था। इसके बाद, भारत ने कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित कर दिया और वीज़ा सेवाओं पर रोक लगा दी, जिससे द्विपक्षीय संबंध और खराब हो गए।
हालांकि, ट्रूडो के सत्ता से हटने और मार्क कार्नी के कनाडा के प्रधान मंत्री बनने के बाद स्थिति में बदलाव आया। जून 2024 में जी7 शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और कार्नी के बीच हुई बैठक में संबंधों को सुधारने पर सहमति बनी।
भारत ने स्पष्ट किया है कि वह कनाडा के साथ सामान्य संबंध चाहता है, लेकिन खालिस्तानी गतिविधियों को बर्दाश्त नहीं करेगा। नई नियुक्तियाँ इस बात का संकेत हैं कि भारत ओटावा के साथ संवाद फिर से शुरू करने के लिए तैयार है।
कनाडा के लिए भारत एक रणनीतिक साझेदार होने के साथ-साथ बड़ी संख्या में भारतीय प्रवासियों का घर भी है। कार्नी सरकार दोनों देशों के बीच संबंधों को सुधारने के लिए उत्सुक है।
भारत और कनाडा दोनों ही बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों से प्रभावित हैं। भारत उत्तरी अमेरिका के साथ अपने आर्थिक और तकनीकी सहयोग को मजबूत करना चाहता है। कनाडा, अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखते हुए भारत को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। शिक्षा, निवेश और व्यापार दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण अवसर प्रदान कर सकते हैं।