भारत की सीमा के पास, एक नया तनाव उभर रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान और पड़ोसी ईरान के बीच पानी को लेकर तनातनी बढ़ गई है। ईरान जल संकट से जूझ रहा है, जहाँ 90% से अधिक क्षेत्र सूखे की चपेट में हैं और कई नदियाँ सूख गई हैं। तालिबान का रवैया ईरान के लिए मुश्किलें बढ़ा रहा है।
तेहरान के एक प्रमुख अखबार ने तालिबान पर आरोप लगाया है कि वह ईरान की ओर जाने वाले पानी को जानबूझकर रोक रहा है, ताकि दबाव बनाया जा सके। अखबार ने सरकार से तालिबान को राजनीतिक और आर्थिक रूप से जवाब देने का आग्रह किया है।
विवाद अफगानिस्तान में बने बांधों को लेकर है। हाल ही में हेरात प्रांत में पशदान डैम शुरू हुआ, जिसके कारण हरिरूद नदी का पानी रुक गया और ईरान-तुर्कमेनिस्तान सीमा पर दोस्ती डैम सूख गया। यह डैम ईरान के दूसरे सबसे बड़े शहर मशहद को पानी की आपूर्ति करता है।
इससे पहले भी, हेलमंद नदी पर बने कमल खान डैम के कारण ईरान को परेशानी हुई थी। 1973 की संधि के अनुसार, ईरान को हेलमंद नदी से सालाना 820 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी मिलना चाहिए, लेकिन अफगानिस्तान पानी रोकने के लिए अलग-अलग बहाने बनाता रहा है। जिसके परिणामस्वरूप, सिस्तान-बलूचिस्तान की हमून झीलें बुरी तरह प्रभावित हुईं।
ईरानी मीडिया का मानना है कि तालिबान पानी को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। कभी तेल के बदले पानी की बात होती है, तो कभी तालिबान ईरान से अपनी सरकार को मान्यता देने की मांग करता है। आलोचकों का कहना है कि पिछली सरकारों ने तालिबान को रियायतें दीं, लेकिन पानी के मुद्दे पर सख्ती नहीं दिखाई।
ईरान ने हाल ही में अफगान शरणार्थियों पर कड़ा रुख अपनाया है। 2025 की शुरुआत से, दस लाख से अधिक अवैध अफगानों को वापस भेजा गया है। तालिबान इसे अमानवीय बता रहा है, लेकिन ईरान के लिए यह दबाव बनाने का एक तरीका है। हालाँकि, दोनों देशों के बीच रिश्ते पूरी तरह से नहीं टूटे हैं। हाल ही में खबर आई थी कि तालिबान ने ब्रिटेन के लिए काम कर चुके कुछ अफगानों को ईरान को सौंपने पर सहमति जताई है। इसका मतलब है कि पानी के विवाद के बावजूद दोनों सरकारें अपने-अपने हितों को साधने के लिए गुप्त रूप से सहयोग कर रही हैं।