मलेशिया के तेरेंगानू राज्य में जुमे की नमाज़ छोड़ने पर एक नया सख़्त कानून लागू किया गया है, जिसके तहत अब नमाज़ छोड़ने वालों को दो साल तक की जेल की सज़ा हो सकती है। इस फैसले को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचना हो रही है और इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया जा रहा है। यह कदम मलेशिया की छवि को पाकिस्तान और सऊदी अरब से भी अधिक कठोर बना रहा है।
नए कानून के अनुसार, जो पुरुष बिना किसी वैध कारण के शुक्रवार की नमाज़ से अनुपस्थित पाए जाएंगे, उन्हें जेल और जुर्माना दोनों का सामना करना पड़ सकता है। पहली बार अपराध करने पर दो साल तक की जेल या 3,000 रिंग्गिट का जुर्माना लगाया जा सकता है। पहले यह सज़ा कम थी, लेकिन अब इसे और सख्त कर दिया गया है। मस्जिदों में इस नियम की जानकारी देने के लिए साइनबोर्ड लगाए जाएंगे और धार्मिक गश्ती दल तथा जनता की शिकायतों के आधार पर कार्रवाई की जाएगी।
मानवाधिकार संगठनों ने इस कदम की कड़ी निंदा की है और इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है। उनका कहना है कि धर्म की स्वतंत्रता में न मानने का अधिकार भी शामिल है। सरकार ने कहा है कि यह सज़ा आखिरी विकल्प के तौर पर ही लागू की जाएगी।
यह कानून 2001 में पहली बार लागू हुआ था और 2016 में इसमें संशोधन किया गया था। मलेशिया में दोहरी कानूनी व्यवस्था है: सिविल लॉ और शरिया लॉ, जो मुस्लिम आबादी पर लागू होता है। पड़ोसी राज्य केलंतान ने 2021 में शरिया कानून को और सख्त करने की कोशिश की थी, लेकिन मलेशिया की फेडरल कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया।