अगस्त में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मुलाकात अलास्का में होने वाली है, जिसका मुख्य एजेंडा यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के तरीकों पर चर्चा करना है। ट्रंप ने इस बैठक की घोषणा करते हुए रूस को चेतावनी दी थी कि अगर रूस यूक्रेन में युद्धविराम पर सहमत नहीं होता है, तो उसे और अधिक अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
ट्रंप के अनुरोध के बाद रूस और यूक्रेन के बीच तीन दौर की बातचीत हुई है, लेकिन अब तक दोनों पक्ष शांति समझौते के करीब नहीं पहुंच पाए हैं। बैठक अलास्का के एंकोरेज में जॉइंट बेस एलमेंडॉर्फ़-रिचर्डसन में होगी, जो अलास्का का सबसे बड़ा सैन्य अड्डा है। यह बेस 64,000 एकड़ में फैला हुआ है और आर्कटिक क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य तैयारियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र है।
क्या आप जानते हैं कि जिस अलास्का में ट्रंप और पुतिन मिलने वाले हैं, वह कभी रूस का हिस्सा था? यदि रूस ने इसे नहीं बेचा होता, तो आज अमेरिका का सबसे बड़ा राज्य कौन सा होता? क्या इस मुलाकात के पीछे इतिहास की कोई छिपी हुई चाल है? आइए, अलास्का की पूरी कहानी जानते हैं, जिसमें राजनीति, रणनीति और अरबों डॉलर का सौदा छिपा है!
18वीं सदी में, रूसी खोजकर्ता विटस बेरिंग ने अलास्का में पहली बार कदम रखा। यहां फर और जानवरों की खाल का व्यापार शुरू हुआ। सिटका इसकी राजधानी बनी, लेकिन रूस से इसकी दूरी के कारण, संकट के समय मदद पहुंचाना मुश्किल था। 1850 के दशक में क्रीमियन युद्ध के दौरान ब्रिटिश नौसेना ने रूसी बस्तियों पर हमला किया, जिससे रूस को इस दूरस्थ क्षेत्र को नियंत्रित करने की कठिनाई का एहसास हुआ।
रूस के जार अलेक्जेंडर द्वितीय को अलास्का पर बढ़ते खर्च और घटते व्यापार की समस्या का सामना करना पड़ा। उन्हें डर था कि अगर ब्रिटेन के साथ युद्ध हुआ, तो यह क्षेत्र खो जाएगा। इस डर से, रूस ने अमेरिका के साथ बातचीत शुरू की। अमेरिकी विदेश मंत्री विलियम सेवार्ड ने महसूस किया कि अलास्का अमेरिका के लिए एशिया का प्रवेश द्वार बन सकता है।
30 मार्च 1867 को, रूस ने 15 लाख 70 हजार वर्ग किलोमीटर का यह विशाल क्षेत्र केवल 72 लाख डॉलर में अमेरिका को बेच दिया! उस समय, एक एकड़ जमीन के लिए रूस को केवल 2 सेंट मिले थे। अमेरिका में इस सौदे का मजाक उड़ाया गया और इसे ‘सेवार्ड्स फॉली’ कहा गया।
लेकिन जल्द ही अलास्का सोने की खान बन गया! 1896 में क्लोंडाइक गोल्ड रश ने हजारों लोगों को यहां आकर्षित किया। 20वीं सदी में तेल और गैस के भंडार मिले। आज, अलास्का अमेरिका के ऊर्जा संसाधनों का सबसे बड़ा स्रोत है।
अलास्का की रणनीतिक स्थिति भी महत्वपूर्ण है, जो अमेरिका और रूस के बीच केवल 85 किमी की दूरी पर है। शीत युद्ध के दौरान यहां अमेरिकी सैन्य ठिकाने स्थापित किए गए थे, और आज भी यहां से रूस की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। अलास्का आर्कटिक सर्कल के करीब है, जिससे नए समुद्री रास्ते खुल रहे हैं और तेल और गैस के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है।
आज, अलास्का अमेरिकी वायु सेना और नौसेना के लिए एक महत्वपूर्ण अड्डा है। यही कारण है कि अमेरिका और रूस के बीच संबंधों में किसी भी महत्वपूर्ण बदलाव के साथ अलास्का चर्चा में आ जाता है।
2025 में होने वाली ट्रंप-पुतिन की मुलाकात केवल एक औपचारिक बैठक नहीं है, बल्कि यह दुनिया के लिए अमेरिका-रूस के संबंधों में एक नए चरण का संकेत है। दोनों नेता आर्कटिक, ऊर्जा, सैन्य संतुलन और नई तकनीकों पर चर्चा करेंगे।
यह भी सवाल है कि क्या रूस को अलास्का बेचने का पछतावा है? इतिहासकारों का मानना है कि अगर अलास्का आज रूस के पास होता, तो उसकी आर्कटिक नीति और मजबूत होती। वहीं, अमेरिका के लिए अलास्का ऊर्जा, सुरक्षा और भू-राजनीति का सबसे महत्वपूर्ण उपकरण है। जलवायु परिवर्तन, आर्कटिक में नए संसाधनों की दौड़ और वैश्विक राजनीति के बीच अलास्का का महत्व बढ़ने वाला है। क्या अमेरिका और रूस के बीच टकराव या सहयोग की नई कहानी यहीं से शुरू होगी?