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    Home»World»इलेक्टोरल बॉन्ड में कंपनी के संस्थापक की एसआईटी जांच की जरूरत नहीं’, सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की याचिका खारिज कर दी
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    इलेक्टोरल बॉन्ड में कंपनी के संस्थापक की एसआईटी जांच की जरूरत नहीं’, सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की याचिका खारिज कर दी

    Indian SamacharBy Indian SamacharAugust 2, 20244 Mins Read
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    इलेक्टोरल बॉन्ड में कंपनी के संस्थापक की एसआईटी जांच की जरूरत नहीं’, सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज की याचिका खारिज कर दी
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    सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड के माध्यम से दान लेने वाले राजनीतिक आश्रम और दान देने वाले धार्मिक घरों के बीच संतगांठ के कथित आरोपियों की विशेष जांच दल (एसआईटी) से मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया है।

    मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने आज इस मामले की सुनवाई की। दो गैर सरकारी एसोसिएट्स, जनरल कॉज़ और सेंटर फ़ॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन की याचिका में इंकलाबी बॉन्ड योजना के तहत कथित चंदा लो और पीएचडी की व्यवस्था की जांच के लिए एक विशेष जांच दल की मांग की गई थी।

    CJI दिवाई चंद्रचूड़ ने क्या कहा?

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अमेरिकी कंपनियों और राजनीतिक संगठनों के खिलाफ जांच के लिए एसआईटी ने गलत तरीके से धन जब्त करना, कंपनियों पर जुर्माना लगाना, अदालत की निगरानी में जांच और आयकर विभाग को 2018 के बाद से राजनीतिक दस्तावेजों को जब्त करना बताया। असेंमेंट की भी मांग की गई.

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    सीजेआई ने कहा कि वकीलों ने बताया कि हमारे पिछले ऑर्डर के बाद सार्वजनिक रूप से इलेक्टोरल बैंड के आंकड़ों में राजनीतिक गुट की सरकार से लाभ लेने के लिए कंपनी की तरफ से चंदा डे की बात सामने आई है। उनका कहना है कि एसआईटी बनाना जरूरी है क्योंकि सरकारी रजिस्ट्रेशन कुछ नहीं है। उनका कहना है कि कई मामलों में निर्देश के कुछ अधिकारी खुद भी चंदे का दबाव बनाना शामिल हैं।

    सीधे जांच शुरू नहीं होगी कोर्ट- CJI

    मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इलेक्टोरल बैंड की खरीद संसद के तहत कानून के तहत हुई है। एक ही कानून के आधार पर राजनीतिक विचारधारा को चंदा मिला। यह कानून अब रद्द किया जा चुका है। अब हमें यह तय करना है कि नीचे दिए गए चंदे की जांच के तहत क्या किया जाए। इस दस्तावेज़ में यह दावा किया गया है कि राजनीतिक आश्रमों को चंदा लाभ के लिए भुगतान किया गया है ताकि उन्हें सरकारी हितों से लाभ मिल सके या उनका खाता सरकार की नीति में बदल सके। यह भी माना जाता है कि सरकारी जांच पड़ताल नहीं की जाएगी।

    उन्होंने आगे कहा कि हमने मार्केटिंग से ये कहा कि ये आपकी सबकी धारणा है. अभी ऐसा नहीं लगता कि कोर्ट सीधे तौर पर जांच शुरू कर दे. जिन मामलों में किसी को खतरा है, उन्हें कानून से हटाया जा सकता है। उसका समाधान न्यायालय में नहीं हो सकता। जांच को लेकर कानून में कई तरीके हैं। सर्वोच्च न्यायालय की तरफ से स्थायी स्थिति की जांच की जाएगी। अन्य कानूनी विकल्प देखें.

    सीजेआई ने कहा कि सीधे सुप्रीम कोर्ट में कानूनी विकल्प उपलब्ध कराना सही नहीं है। राजनीतिक मिथकों से चंदे की राशि ज़ब्त करने या आयकर संग्रह के लिए हमें कहना नहीं लगता। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश जज की निगरानी में एसआईटी गठन की अभी कोई जरूरत नहीं है। जिन मामलों में एजेंसी जांच नहीं करती है या उनके मेन हाई कोर्ट के खिलाफ बंद करदाताओं की जांच नहीं कर सकती है।

    बता दें कि इसी साल फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक शेयरधारकों को एलएलसी बांड योजना को रद्द कर दिया था और भारतीय स्टेट बैंक को बांड जारी करने का तुरंत आदेश दिया था। इसके साथ ही कोर्ट ने एसबीआई को सभी दानदाताओं के विवरण सार्वजनिक करने का भी आदेश दिया था।

    याचिकाओं में दावा किया गया था कि एसबीआई द्वारा जारी किए गए इंटेलीजेंस बॉन्ड के आंकड़ों से पता चला है कि इनमें से ज्यादातर को धार्मिक घरों द्वारा चंदा लो और धार्मिक आश्रम की व्यवस्था के रूप में दान किया गया था। दाखिल में यह भी आरोप लगाया गया है कि ये गुप्त केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), निदेशालय निदेशक (ईडी) या सचिवालय विभाग सहित केंद्रीय जांच ब्यूरो की कार्रवाई से फिर से बचाव या आर्थिक लाभ के लिए हो सकते हैं। ऐसे में धार्मिक अनुष्ठानों में एसआईटी से जांच कराई जाए।

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