जनजातीय कार्य मंत्रालय ने ‘आदि वाणी’ का बीटा संस्करण लॉन्च किया है, जो भारत का पहला AI-आधारित ट्राइबल भाषा अनुवादक है। इस पहल का उद्देश्य जनजातीय भाषाओं को संरक्षित करना और उन्हें बढ़ावा देना है। यह जनजातीय गौरव वर्ष के तहत विकसित किया गया है और जनजातीय क्षेत्रों में भाषा और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। यह वर्तमान में गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है और जल्द ही iOS और वेब प्लेटफॉर्म पर भी उपलब्ध होगा। आदि वाणी का मुख्य उद्देश्य जनजातीय और गैर-जनजातीय समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना और AI तकनीक की मदद से लुप्त हो रही जनजातीय भाषाओं को सुरक्षित रखना है। यह AI-आधारित ट्रांसलेटर टूल है जो भविष्य में ट्राइबल भाषाओं के लिए एक बड़े लैंग्वेज मॉडल की नींव बनेगा, जिसमें उन्नत तकनीक और समुदाय की भागीदारी शामिल है। भारत में 461 जनजातीय भाषाएँ हैं, जिनमें से कई खतरे में हैं। आदि वाणी, IIT दिल्ली, BITS पिलानी, IIIT हैदराबाद और IIIT नवा रायपुर के सहयोग से विकसित किया गया है, जिसमें झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और मेघालय के जनजातीय अनुसंधान संस्थानों ने भी योगदान दिया है। यह टूल हिंदी/अंग्रेजी और जनजातीय भाषाओं के बीच वास्तविक समय में अनुवाद करने में सक्षम है, छात्रों के लिए इंटरैक्टिव भाषा शिक्षा प्रदान करता है, और लोककथाओं, मौखिक परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहर को डिजिटल रूप से संरक्षित करता है। यह जनजातीय समुदायों में डिजिटल साक्षरता, स्वास्थ्य संचार और नागरिक भागीदारी को भी बढ़ावा देगा। बीटा संस्करण में संथाली, भीली, मुंडारी और गोंडी जैसी भाषाएँ शामिल हैं, और भविष्य में कुई और गारो भाषाओं को भी शामिल किया जाएगा।
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