बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की जीत के बाद अब झारखंड की राजनीति गरमा गई है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि राज्य में सत्ता का समीकरण बदल सकता है। विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी पत्नी कल्पना सोरेन ने कुछ दिन पहले दिल्ली में भाजपा के एक बड़े नेता से गुप्त मुलाकात की है।
इस मुलाकात को लेकर यह भी दावा किया जा रहा है कि दोनों पार्टियों के बीच मिलकर सरकार चलाने पर शुरुआती सहमति बन चुकी है। यहां तक कि उपमुख्यमंत्री पद के लिए भी चर्चाएं आगे बढ़ी हैं, और यह पद बाबूलाल मरांडी या चंपाई सोरेन को मिल सकता है।
यह खबर इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्तमान में झारखंड में हेमंत सोरेन की गठबंधन सरकार के पास पूर्ण बहुमत है और सरकार को किसी भी तरह के आंतरिक या बाहरी दबाव का सामना नहीं करना पड़ रहा है। कांग्रेस भी भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए गठबंधन के साथ खड़ी रहने को मजबूर होगी। हालांकि, राजनीतिक समीकरण केवल संख्या बल पर आधारित नहीं होते, बल्कि यह रणनीति, दबाव और अवसर का भी खेल है।
हेमंत सोरेन सरकार के लिए कुछ वित्तीय चुनौतियां भी सामने आई हैं। चुनाव के दौरान जनता से किए गए वादे, जैसे महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये ‘मइयां सम्मान योजना’ के तहत देना और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 3,200 रुपये प्रति क्विंटल तय करना, उन्हें पूरा करने में सरकार को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इन वादों को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से वित्तीय मदद की आवश्यकता होगी। ऐसे में, भाजपा के साथ नजदीकियां झामुमो के लिए एक व्यावहारिक समाधान पेश कर सकती हैं।
वहीं, भाजपा भी राज्य में अपनी खोई हुई जमीन वापस पाने की कोशिश में जुटी है। विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद पार्टी यह महसूस कर रही है कि मौजूदा स्थिति में वापसी मुश्किल है। आदिवासी वोटरों के बीच भाजपा की पैठ कम हुई है और उसकी राजनीतिक पकड़ भी कमजोर हुई है।
अगर भाजपा झामुमो के साथ मिलकर काम करती है, तो यह पार्टी के लिए एक बड़ी सफलता साबित हो सकती है। इससे यह संदेश भी जाएगा कि भाजपा विभिन्न सामाजिक वर्गों के साथ मिलकर काम करने को तैयार है। यह भी गौर करने वाली बात है कि झारखंड की राजनीति के दो प्रमुख चेहरे, हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी, पिछले कुछ समय से काफी शांत हैं, जिसे राजनीतिक विश्लेषक एक बड़े बदलाव के संकेत के रूप में देख रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि झारखंड की राजनीति एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है, जहां जल्द ही सत्ता के नए समीकरण सामने आ सकते हैं।
