झारखंड में पेसा कानून (PESA Act) को लागू करने में राज्य सरकार की हो रही देरी पर आदिवासी–मूलवासी जनाधिकार मंच ने गंभीर चिंता जताई है और सरकार पर तत्काल कदम उठाने का दबाव बनाया है। मंच के केंद्रीय उपाध्यक्ष, विजय शंकर नायक, ने कहा है कि पेसा सिर्फ एक कानून नहीं, बल्कि झारखंड के मूलनिवासियों की पहचान, अस्मिता और स्वशासन का प्रतीक है। उन्होंने सरकार की नीरस चुप्पी को ग्रामसभाओं की पारंपरिक शक्तियों को कमजोर करने वाला कदम बताया है।
नायक ने सीधे तौर पर सरकार से पूछा, “आप किसके इशारे पर काम कर रहे हैं?” उन्होंने कहा कि पेसा कानून के लागू न होने का सबसे बड़ा खामियाजा उन क्षेत्रों को भुगतना पड़ेगा जहाँ खनन और भूमि अधिग्रहण का काम तेज़ी से चल रहा है। इससे यह आशंका और प्रबल होती है कि कहीं सरकार कॉर्पोरेट और खनन माफियाओं के दबाव में तो नहीं है। उन्होंने सरकार से यह स्पष्ट करने की मांग की कि किस कारणवश पेसा कानून पर निर्णायक कार्रवाई नहीं हो पा रही है। वर्तमान में, जमीनी स्तर पर ग्रामसभाएं अधिकारविहीन महसूस कर रही हैं।
हालांकि सरकार की ओर से बार-बार बयान आ रहे हैं, लेकिन पेसा कानून लागू करने की अधिसूचना अब तक जारी नहीं हुई है। ग्रामसभाओं को सशक्त बनाने के नियम और पंचायतों की जमीनी भूमिका पर भी कोई ठोस जवाब नहीं मिला है, जिससे झारखंड की जनता भ्रमित है। नायक के अनुसार, सरकार की यह देरी ग्रामसभाओं को अधिकार देने के बजाय, उनके संवैधानिक अधिकारों को रोकने की एक सोची-समझी रणनीति प्रतीत होती है।
उन्होंने आगाह किया कि यदि पेसा कानून लागू नहीं होता है, तो झारखंडी समाज के अस्तित्व पर गंभीर खतरा मंडराएगा। बिना इस कानून के, जमीनें छीनी जाएंगी, प्राकृतिक संसाधन लूटे जाएंगे, और आदिवासी–मूलवासी समुदाय और भी पिछड़ जाएंगे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सरकार ने देर की तो आने वाले समय में विस्थापन बढ़ेगा, पारंपरिक शासन व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी और खनिज संपदा की लूट तेज होगी। यह सरकार के लिए ‘देर आयद दुरुस्त आयद’ का मौका है, लेकिन अगर अभी कदम नहीं उठाया तो भविष्य में स्थिति और विकट हो सकती है।
नायक ने याद दिलाया कि सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला वर्ष जल्द ही पूरा होने वाला है, और यह झारखंडी समाज की उम्मीदों के लिए एक अहम पड़ाव है। उन्होंने मांग की कि यदि सरकार झारखंड के लोगों के हित में है, तो उसे 28 नवंबर 2025 की निर्धारित तिथि से पहले या तुरंत बाद पेसा कानून लागू करने की निश्चित तारीख का ऐलान करे। यदि सरकार अपनी खामोशी बनाए रखती है, तो आदिवासी–मूलवासी संगठन बड़े पैमाने पर राज्यव्यापी आंदोलन शुरू करने को मजबूर होंगे। अब जनता और इंतजार करने को तैयार नहीं है।
