पलामू जिले के एक ऐसे रत्न, डॉ. सुरेंद्र सिंह, जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा में समर्पित कर दी, अब हमारे बीच नहीं रहे। वे ₹5 की मामूली फीस लेकर इलाज करने के लिए जाने जाते थे और इसीलिए उन्हें ‘गरीबों का भगवान’ कहा जाता था। उनका निधन चिकित्सा जगत और खासकर पलामू के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
डॉ. सुरेंद्र सिंह ने चिकित्सा को एक व्यवसाय के तौर पर नहीं, बल्कि एक सेवा के रूप में अपनाया। वे मरीजों से कभी भी पैसे का लालच नहीं रखते थे और न ही अनावश्यक जांचों के नाम पर उन्हें लूटते थे। उनके दरवाजे हर किसी के लिए, हर समय खुले रहते थे। उनकी विनम्रता और सेवा भाव अनुकरणीय था।
आज के महंगा चिकित्सा परिदृश्य में, जहाँ एक सामान्य डॉक्टर की फीस हजारों रुपये होती है, डॉ. सुरेंद्र सिंह का ₹5 में इलाज करना एक मिसाल था। कई बार तो वे पैसे की तंगी वाले मरीजों से फीस लेते ही नहीं थे। उनकी दरियादिली का आलम यह था कि हैदरनगर, रमना, और नगर ऊंटरी जैसे इलाकों में उनका नाम सम्मान से लिया जाता था। वे अपने क्षेत्र के लोगों के लिए किसी वरदान से कम नहीं थे।
बीमारी और बढ़ती उम्र के कारण जब उन्होंने हैदरनगर छोड़कर डाल्टनगंज में बसना शुरू किया, तब भी दूर-दूर से मरीज उनके पास आते थे। एक निजी अस्पताल के आग्रह पर वे वहाँ सेवा देने को तैयार हुए, लेकिन उन्होंने अपनी ₹5 की फीस की शर्त नहीं छोड़ी। अस्पताल प्रबंधन के समझाने पर वे ₹50 फीस लेने को राजी हुए, जो उनके सेवा भाव का ही एक और रूप था।
मूल रूप से बिश्रामपुर थाने के मुरमा गांव के रहने वाले डॉ. सुरेंद्र सिंह ने बहुत संघर्षपूर्ण जीवन जिया था। उन्होंने गरीबी को करीब से देखा था और इसीलिए वे दूसरों की तकलीफ को समझते थे। उनकी शिक्षा-दीक्षा भी काफी कठिनाई से हुई थी।
वे सिर्फ अच्छे डॉक्टर ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी थे। अपने रिश्तों और लोगों के प्रति उनका लगाव अद्भुत था। उन्होंने कभी भी अपने प्रियजनों से इलाज के लिए पैसे नहीं लिए। उनका रहन-सहन, खान-पान और जीवनशैली बेहद सादगीपूर्ण थी। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्हें देखकर शायद ही कोई कह पाता कि वे इतने बड़े डॉक्टर हैं। ऐसे ही नेक दिल और समर्पित लोगों को धरती पर ईश्वर का रूप माना जाता है।
