झारखंड के खूंटी जिले और आसपास के जंगली क्षेत्रों में रहने वाले लोग पिछले पांच दशकों से जंगली हाथियों के आतंक से जूझ रहे हैं। इस दौरान, हाथियों के हमलों में सैकड़ों लोगों की मौत हो गई है और भारी संपत्ति का नुकसान हुआ है।
हाथियों के आतंक से छुटकारा पाने के लिए खूंटी जिले के लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए, जिनमें सड़क जाम, सरकारी कार्यालयों का घेराव और रेल रोको आंदोलन शामिल थे, लेकिन इसका कोई खास असर नहीं हुआ। अब हाथी इतने बेखौफ हो गए हैं कि वे दिनदहाड़े शहरों में भी घुसने लगे हैं। करीब 15-20 साल पहले, राज्य सरकार ने कर्रा प्रखंड के इंद्रवन में हाथियों के लिए एक आश्रय बनाने की घोषणा की थी, लेकिन यह योजना कभी भी पूरी नहीं हो पाई। इसके अलावा, हाथियों के आतंक से प्रभावित क्षेत्रों में बाड़ लगाने जैसे उपाय करने की भी घोषणा की गई थी, लेकिन ये योजनाएं भी कागजों तक ही सीमित रह गईं।
ग्रामीणों का कहना है कि वन विभाग का काम अब सिर्फ हाथियों के हमले में मारे गए लोगों का पोस्टमार्टम करना और पीड़ित परिवारों को कुछ हजार रुपये देना रह गया है। तोरपा प्रखंड के डेरांग, रोन्हे, कालेट, गिड़ुम, एरमेरे सहित कई गांवों के ग्रामीणों का कहना है कि हाथियों के डर से उन्होंने खेती करना तक छोड़ दिया है। हाथियों ने खेतों में फसलों को तो बर्बाद किया ही है, घरों में रखा अनाज भी सुरक्षित नहीं है।
झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ सहित कई राज्यों में, मानव और हाथियों के बीच संघर्ष लगातार बढ़ रहा है। रनिया के सेवानिवृत्त वन प्रमंडल पदाधिकारी अर्जुन बड़ाईक के अनुसार, जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण हाथियों का प्राकृतिक आवास खत्म हो रहा है। इससे वे भोजन और पानी की तलाश में गांवों की ओर आ रहे हैं और लोगों पर हमला कर रहे हैं। इसके अलावा, घने जंगलों में नक्सलियों की मौजूदगी के कारण भी हाथी जंगल छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। अर्जुन बड़ाईक ने कहा कि हमें प्रकृति के साथ छेड़छाड़ बंद करनी चाहिए और जंगलों की रक्षा करनी चाहिए।
तोरपा के शिक्षाविद और सेवानिवृत्त शिक्षक पंचम साहू कहते हैं कि जब कोई हमारा घर छीन लेगा, तो हमें कहीं न कहीं तो शरण चाहिए। उन्होंने कहा कि जंगली जानवर हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं और उनकी रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी है। यदि जानवरों का संरक्षण नहीं किया गया, तो प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाएगा।
कर्रा प्रखंड के किसान दिलीप शर्मा ने कहा कि झारखंड के सारंडा, इंद्र वन और नगड़ा जंगल जैसे घने जंगल कभी हाथियों के लिए सुरक्षित आश्रय थे, लेकिन वनों का क्षेत्रफल लगातार घट रहा है, जिसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं।