झारखंड राज्य का निर्माण एक लंबी और कठिन यात्रा का परिणाम था, जिसमें शिबू सोरेन, जिन्हें गुरुजी के नाम से जाना जाता है, ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह क्षेत्र, जो कभी बिहार का हिस्सा था, संसाधनों से भरपूर था, लेकिन राजनीतिक शक्ति उत्तर बिहार के हाथों में थी, जबकि दक्षिण में आदिवासी बहुल आबादी थी।
शिबू सोरेन ने आदिवासियों की पीड़ा को समझा और उनके अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) का गठन किया और अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया। उनके अथक प्रयासों से ही नवंबर 2000 में झारखंड राज्य का गठन हुआ, जिसमें बिहार के दक्षिणी हिस्से, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ क्षेत्र शामिल थे।
शिबू सोरेन को अलग राज्य के लिए 27 साल तक संघर्ष करना पड़ा। वह तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। उनके बेटे हेमंत सोरेन भी मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें भी कुछ समय के लिए पद से हटना पड़ा।
शिबू सोरेन के पिता की हत्या ने उनके भीतर आक्रोश पैदा किया, जिसने उन्हें सामाजिक और आर्थिक अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया, जो बाहरी लोगों द्वारा शोषित थे।
बिरसा मुंडा जैसे आदिवासी नेताओं ने भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। महाश्वेता देवी ने अपने उपन्यासों में झारखंड के आदिवासियों के संघर्ष को उजागर किया।
शिबू सोरेन को कई आरोपों और चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने आदिवासियों के हक के लिए लड़ाई जारी रखी और झारखंड के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया।