आमतौर पर भारत की आज़ादी की पहली लड़ाई को 1857 की क्रांति माना जाता है, लेकिन हकीकत यह है कि असली शुरुआत 1855 में हुई थी, जब संथालों ने हूल आंदोलन शुरू किया। यह महत्वपूर्ण विद्रोह झारखंड के संथाल परगना में हुआ था, जिसने ब्रिटिश शासन को चुनौती दी।
यह नौ महीने तक चला और इसमें संथालों ने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ ज़बरदस्त प्रतिरोध किया। सिद्धू और कान्हू मुर्मू के नेतृत्व में, चांद और भैरव सहित, हज़ारों संथालों ने एकजुट होकर विद्रोह किया। उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ एक समानांतर सरकार बनाई और महाजनों और जमींदारों के खिलाफ कार्रवाई की। इस आंदोलन का उद्देश्य अपनी ज़मीन को वापस पाना और अंग्रेजों के खिलाफ लड़ना था।
अंग्रेजों ने बदले में क्रूरता दिखाई और निर्दोष लोगों को निशाना बनाया। लेकिन संथालों ने हार नहीं मानी। उन्होंने ब्रिटिश सेना और उनके सहयोगियों का मुकाबला किया। अंग्रेजों ने विद्रोहियों को डराने के लिए हाथियों का इस्तेमाल किया, पर आंदोलन जारी रहा। आखिरकार, ईस्ट इंडिया कंपनी ने नेताओं को पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा की।
हूल आंदोलन का बड़ा असर हुआ। अंग्रेजों को संथालों की मांगों को मानना पड़ा और 1876 में एसपीटी एक्ट लागू किया गया, ताकि संथालों की ज़मीन की रक्षा हो सके और स्वशासन को बढ़ावा मिल सके। इस आंदोलन में सिद्धू-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो सहित कई लोगों ने अपनी जान गंवाई। 26 जुलाई 1856 को सिद्धू मुर्मू को फांसी दी गई और कान्हू मुर्मू को भोगनाडीह में फांसी दी गई। आज, 30 जून को संथाल हूल दिवस मनाया जाता है, जो इस संघर्ष की याद दिलाता है।