नई दिल्ली: अरावली पहाड़ियों की परिभाषा में संभावित बदलाव और उससे जुड़े पर्यावरणीय खतरों को लेकर भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लिया है। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ सोमवार को इस अहम मामले की सुनवाई करेगी, जिसमें न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल होंगे। यह पीठ अरावली क्षेत्र में खनन गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभाव का गहन विश्लेषण करेगी। इस बीच, एक पूर्व वन अधिकारी ने भी सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस मामले को और अधिक गंभीर बना दिया है।
अरावली: पर्यावरण का प्रहरी
गुजरात से लेकर दिल्ली-एनसीआर तक फैली अरावली पर्वत श्रृंखला पर्यावरण के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल मरुस्थल के विस्तार को रोकती है, बल्कि जैव विविधता को भी बढ़ावा देती है और भूजल स्तर को बनाए रखने में मदद करती है। पर्यावरणविदों और आम नागरिकों के बीच यह गहरी चिंता है कि यदि अरावली की परिभाषा को शिथिल किया जाता है, तो पूर्व-संरक्षित क्षेत्रों में भी अवैध खनन और निर्माण कार्य शुरू हो सकते हैं, जिससे इस प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र को अपूरणीय क्षति पहुँच सकती है।
परिभाषा में संशोधन की खबरों ने विभिन्न क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शनों को हवा दी है। जहाँ एक ओर सरकार ने यह स्पष्ट किया है कि अरावली पहाड़ियों को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल इसे बड़े पैमाने पर खनन को बढ़ावा देने की साजिश करार दे रहे हैं। सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा है कि उसके सभी कदम इस पर्वत श्रृंखला की सुरक्षा को ध्यान में रखकर उठाए जा रहे हैं।
खनन पर तत्काल रोक
केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को निर्देश जारी किए हैं कि वे पूरे अरावली क्षेत्र में किसी भी नए खनन पट्टे को जारी करने की प्रक्रिया पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाएं। इस आदेश का उद्देश्य अरावली की भूवैज्ञानिक अखंडता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखना है। साथ ही, सरकार ने राज्यों को मौजूदा खदानों के संचालन में सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का निर्देश दिया है।
भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद (ICFRE) को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने अरावली क्षेत्र के उन अतिरिक्त हिस्सों की पहचान करने का कार्य सौंपा है जहां खनन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। यह पहचान पारिस्थितिक, भूवैज्ञानिक और स्थलाकृतिक अध्ययनों के आधार पर की जाएगी।
ICFRE एक विस्तृत, वैज्ञानिक प्रबंधन योजना भी तैयार करेगा। इस योजना में खनन के समग्र पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन, पारिस्थितिकी तंत्र की वहन क्षमता का आकलन, संवेदनशील क्षेत्रों का निर्धारण और पुनर्वास के उपायों का सुझाव शामिल होगा। इस मसौदा योजना को विशेषज्ञों और संबंधित हितधारकों से परामर्श के लिए सार्वजनिक किया जाएगा।
सरकार ने दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य में अरावली पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। सरकार ने मरुस्थलीकरण रोकथाम, जैव विविधता संरक्षण, जल पुनर्भरण और समग्र पर्यावरणीय स्थिरता में अरावली के महत्वपूर्ण योगदान पर जोर दिया है।
