नई दिल्ली: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, जिनका जन्मदिन 23 दिसंबर को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है, भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण हस्ती रहे हैं। उन्होंने अपना जीवन किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान के लिए समर्पित किया। उनके योगदान के बावजूद, भारतीय प्रधानमंत्रियों के इतिहास में उनका एक अनूठा स्थान है – वे एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने पूरे कार्यकाल में कभी भी संसद के निचले सदन, लोकसभा का सामना नहीं किया। यह असाधारण राजनीतिक घटना 1970 के दशक के उत्तरार्ध की अस्थिर राजनीतिक परिस्थितियों का परिणाम थी।
चौधरी चरण सिंह ने 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। हालांकि, इस अवधि में उनकी सरकार को कभी भी लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हो सका। इस वजह से, उन्हें कभी भी सदन में विश्वास मत के लिए खड़े होने या अपनी सरकार की नीतियों को देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर नहीं मिला।
आपातकाल के बाद का राजनीतिक परिदृश्य:
1977 में आपातकाल की समाप्ति के बाद, जनता पार्टी ने सत्ता हासिल की, जिससे कांग्रेस पार्टी का लंबा एकाधिकार टूटा। चौधरी चरण सिंह, जो किसानों और गांवों से गहराई से जुड़े थे, जनता पार्टी सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाए गए। हालांकि, दल के भीतर के कलह ने गठबंधन को कमजोर कर दिया, जिसके चलते जुलाई 1979 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को इस्तीफा देना पड़ा।
इसके बाद, तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने चौधरी चरण सिंह को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। चरण सिंह ने दावा किया कि उन्हें कांग्रेस (आई) के समर्थन का पत्र मिला है, जिसका नेतृत्व उस समय इंदिरा गांधी कर रही थीं। इस समर्थन के बल पर, 28 जुलाई, 1979 को उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। लेकिन कांग्रेस (आई) का समर्थन बिना शर्तों के नहीं था। पार्टी ने उनसे मांग की कि वे इंदिरा गांधी और संजय गांधी के खिलाफ आपातकाल के दौरान हुई कथित ज्यादतियों से जुड़े सभी कानूनी मामले वापस ले लें। चौधरी चरण सिंह ने राजनीतिक लाभ के बजाय न्याय और सिद्धांतों को प्राथमिकता देते हुए इस मांग को मानने से इंकार कर दिया।
बिना संसद में पेश हुए इस्तीफे की कहानी:
जैसे ही कांग्रेस (आई) ने अपना समर्थन वापस लिया, चौधरी चरण सिंह की सरकार का बहुमत का आधार खत्म हो गया। संसद के सत्र शुरू होने और विश्वास मत की प्रक्रिया होने से पहले ही, अगस्त 1979 में, पद संभालने के लगभग तीन सप्ताह बाद, उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इस प्रकार, वे कभी भी लोकसभा में उपस्थित नहीं हुए। इसके बाद, राष्ट्रपति ने लोकसभा भंग कर दी और नए चुनावों की घोषणा की। जनवरी 1980 में होने वाले अगले आम चुनाव तक, चरण सिंह कार्यवाहक प्रधानमंत्री के रूप में बने रहे।
चरण सिंह की अनूठी विरासत:
यह घटना चौधरी चरण सिंह को भारतीय संसदीय इतिहास में एक अद्वितीय व्यक्ति बनाती है। उन्हें सत्ता में बने रहने के लिए सिद्धांतों से समझौता न करने की उनकी अड़िगता के लिए याद किया जाता है। उनका संक्षिप्त, लेकिन नाटकीय कार्यकाल, अस्थिर राजनीतिक गठबंधनों और सशर्त समर्थन के बीच, भारत की बहुदलीय संसदीय प्रणाली की जटिलताओं को दर्शाता है।
प्रत्येक वर्ष 23 दिसंबर को किसान दिवस के अवसर पर, चौधरी चरण सिंह के किसानों और ग्रामीण भारत के प्रति अथक प्रयासों को याद किया जाता है और उनके किसान-समर्थक के रूप में स्थायी विरासत का सम्मान किया जाता है।
