हाल ही में इस्लामाबाद में हुए उलेमा सम्मेलन ने दुनिया भर में सुरक्षा विशेषज्ञों को हिलाकर रख दिया है। पाकिस्तान के धार्मिक नेताओं ने एक ‘शैडो आर्मी’ के अस्तित्व का खुलासा किया है, जिसमें 30 लाख से अधिक जिहादी शामिल हैं। ये केवल मदरसे नहीं, बल्कि कट्टरपंथ की वो फैक्ट्रियां हैं जो पाकिस्तान की मुख्य सेना को भी बौना बना देती हैं। इन संस्थानों में बच्चों को गणित या विज्ञान की बजाय केवल जिहाद का पाठ पढ़ाया जाता है।
हिलेरी क्लिंटन की चेतावनी आज सच होती दिख रही है। उन्होंने वर्षों पहले कहा था कि पाकिस्तान आतंकवादियों को पाल रहा है और मदरसे चरमपंथ का गढ़ बन रहे हैं। आज, पाकिस्तान इस सच्चाई से मुंह नहीं छिपा रहा है, बल्कि गर्व से प्रदर्शित कर रहा है।
प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर की उपस्थिति में, मौलाना ताहिर अशरफी ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनके मदरसे डॉक्टरों या इंजीनियरों की नहीं, बल्कि आतंकवादियों की फौज तैयार कर रहे हैं। यह बयान दुनिया भर के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है।
पाकिस्तान की ‘जिहाद फैक्ट्री’ के चौंकाने वाले आँकड़े
पाकिस्तान में आधिकारिक तौर पर 36,331 मदरसे पंजीकृत हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि इनकी संख्या 40,000 से 45,000 के बीच है। सबसे खतरनाक बात यह है कि इनमें से 20,000 से अधिक मदरसे बिना किसी सरकारी निगरानी के चल रहे हैं। ये ‘अंधेरे’ में काम करने वाले संस्थान जिहादियों को तैयार करने वाली फैक्ट्रियों की तरह हैं।
इन मदरसों में पढ़ने वाले 4.5 से 5 मिलियन छात्र गणित या विज्ञान नहीं सीखते। उन्हें सिखाया जाता है कि ‘काफिर’ (हिंदुओं) का सफाया करना ज़रूरी है। आत्मघाती हमले को ‘शहादत’ का दर्जा दिया जाता है और भारत के खिलाफ ‘गजवा-ए-हिंद’ को अपना ‘पवित्र कर्तव्य’ माना जाता है।
30 लाख जिहादी बनाम पाकिस्तान की कुल सेना
पाकिस्तान की कुल सेना में लगभग 660,000 जवान हैं, जबकि यह ‘मदरसा आर्मी’ पांच गुना से भी ज्यादा बड़ी है। पाकिस्तान के अर्धसैनिक बलों की संख्या 300,000 है, जबकि जिहादियों की संख्या इनसे दस गुना ज्यादा है। यहाँ तक कि अगर पाकिस्तान के सभी सुरक्षा बलों (लगभग 1.56 मिलियन) को भी मिला दिया जाए, तो भी इन मदरसों से निकले जिहादियों की संख्या दोगुनी है।
लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठन पंजाब में अकेले 500-700 मदरसे चलाते हैं। जैश-ए-मोहम्मद के भी बहावलपुर में 300-500 मदरसे हैं। ये केवल शिक्षण संस्थान नहीं, बल्कि वो केंद्र हैं जिन्होंने मुंबई हमलों जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले आतंकियों को तैयार किया।
सेना और आतंकियों का अटूट रिश्ता
यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान की सेना और उसके आतंकी समूह एक-दूसरे के पूरक हैं। जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के हमलों में पाकिस्तानी सैनिक मारे जाते हैं, तो लश्कर के नेता उनके अंतिम संस्कार में शामिल होते हैं। दूसरी ओर, जब भारतीय सेना ने आतंकियों को ढेर किया, तो पाकिस्तानी सेना के अधिकारी उनके अंतिम संस्कार में सम्मान के साथ मौजूद थे। यह दिखाता है कि दोनों के बीच ‘दो जिस्म, एक जान’ का रिश्ता है।
अंतर्राष्ट्रीय बेइज्जती
हाल ही में, प्रधानमंत्री शरीफ तुर्कमेनिस्तान से अपमानित होकर लौटे, जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने उन्हें लंबा इंतजार कराया। एक ऐसे नेता का क्या सम्मान हो सकता है जिसकी अपनी सेना आतंकवाद को बढ़ावा दे रही हो?
पाकिस्तान अब वही बन चुका है जिससे वह हमेशा डरता था – एक ऐसा देश जहाँ आतंकियों की संख्या रक्षकों से ज़्यादा है, जहाँ कारखानों से ज़्यादा मदरसे हैं, और जहाँ जिहाद ही उसका मुख्य ‘निर्यात’ बन गया है। दुनिया को इस खतरे को पहचानना होगा।
