पाकिस्तान से जारी एक वीडियो ने भारत विरोधी आतंकवाद में इस्लामाबाद की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं। लाहौर में फिल्माई गई इस क्लिप में, कुख्यात आतंकवादी हाफिज सईद के बेटे तल्हा सईद और उसके साथियों को एक जनसभा में भारत के खिलाफ खुलेआम ज़हर उगलते हुए दिखाया गया है। इससे पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर के ऐसे कृत्यों को संरक्षण देने के आरोपों को बल मिला है।
लश्कर-ए-तैयबा की इस बैठक में, जहाँ भारत को निशाना बनाने वाले भाषण दिए जा रहे थे, तल्हा सईद जैसे शीर्ष आतंकवादी नेताओं को मंच साझा करते देखा गया। यह उसी दिन हुआ जब जनरल आसिम मुनीर ने भारत के खिलाफ तीखी बयानबाजी की थी, जो सैन्य नेतृत्व और प्रतिबंधित आतंकी संगठनों के बीच सुनियोजित मिलीभगत की ओर इशारा करता है।
**खुलेआम जुटे आतंकी, जारी की धमकियां**
लाहौर के इस कार्यक्रम में, 26/11 हमलों के सरगना हाफिज सईद का बेटा तल्हा सईद प्रमुखता से मौजूद था। वह पहलगाम आतंकी हमले के सूत्रधार माने जाने वाले सैफुल्लाह कसूरी सहित अन्य आतंकवादियों के साथ देखा गया।
भाषणों के दौरान, वक्ताओं ने भारत को “गंगा-जमुना में खून बहाने” और “दिल्ली की ईंट से ईंट बजाने” जैसी भयानक धमकियां दीं। इन धमकियों का सार्वजनिक रूप से दिया जाना, पाकिस्तान की सत्ताधारी व्यवस्था द्वारा इन्हें प्राप्त समर्थन की ओर साफ इशारा करता है।
**राजनीतिक आड़ में आतंकी भर्ती**
वीडियो में लगे एक उर्दू पोस्टर ने मामले को और गंभीर बना दिया है। इस पर “2025 चुनाव अभियान” का जिक्र है, जिससे पता चलता है कि तल्हा सईद और सैफुल्लाह कसूरी, हाफिज सईद के राजनीतिक संगठन, मिली मुस्लिम लीग के लिए सदस्यों की भर्ती में जुटे हैं। यह संगठन पहले भी पाकिस्तान में चुनावी राजनीति में सक्रिय रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रतिबंधित एक संगठन द्वारा इस तरह का खुला प्रचार पाकिस्तान की सेना के संरक्षण के बिना संभव नहीं है। मिली मुस्लिम लीग को लंबे समय से लश्कर-ए-तैयबा के संचालन को छिपाने के लिए एक राजनीतिक मुखौटा माना जाता रहा है।
**मुनीर और हाफिज का पुराना रिश्ता**
खुफिया जानकारी के अनुसार, सेना प्रमुख आसिम मुनीर और हाफिज सईद के आतंकी नेटवर्क के बीच संबंध काफी पुराने हैं। 2018 में, जब मुनीर इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के प्रमुख थे, उन्होंने कथित तौर पर लश्कर-ए-तैयबा के लिए धन जुटाने हेतु हवाला और फर्जी कंपनियों के नेटवर्क को सक्रिय किया था।
2019-2020 के दौरान, कोर कमांडर के पद पर रहते हुए, मुनीर ने कथित तौर पर जमात-उद-दावा, जो लश्कर का ही एक हिस्सा है, के अभियानों का दायरा बढ़ाया। उनके कार्यकाल में, जमात-उद-दावा का प्रभाव पाकिस्तानी पंजाब के मस्जिदों और मदरसों तक फैल गया, जिससे आतंकी समूह के लिए युवाओं को बरगलाने का तंत्र मजबूत हुआ।
**’हाफिज’ नाम का अनोखा संयोग**
एक दिलचस्प बात यह है कि आसिम मुनीर और हाफिज सईद दोनों के नाम में “हाफिज” शब्द जुड़ा है। 1990 के दशक में, आसिम मुनीर ने विदेश में तैनाती के दौरान कुरान को कंठस्थ किया था, जिसके कारण उन्हें “हाफिज” की उपाधि मिली, जो इस्लामिक परंपरा में कुरान का ज्ञाता होने का प्रतीक है। पाकिस्तान की सेना में उन्हें “हाफिज-ए-कुरान” के नाम से जाना जाता है।
यह स्पष्ट है कि हाफिज सईद और आसिम मुनीर, भले ही अलग-अलग भूमिकाएं निभा रहे हों, लेकिन भारत के प्रति उनकी मंशा और कार्य समान हैं। एक तरफ जहाँ हाफिज सईद आतंकवाद को बढ़ावा देता है, वहीं दूसरी ओर आसिम मुनीर उसकी रक्षा करते हैं। यह जोड़ी मिलकर पाकिस्तान की असली चेहरा दुनिया के सामने लाती है।
