राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम्’ को लेकर भारत में फिर से गरमागरम बहस छिड़ गई है, जो राजनीतिक, वैचारिक और धार्मिक मतभेदों को उजागर कर रही है। संसद में इस ऐतिहासिक गीत के 150 साल पूरे होने के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर मुस्लिम लीग के प्रभाव में आकर गीत को बांटने का आरोप लगाया। विपक्षी दलों ने पलटवार करते हुए कहा कि सरकार आगामी पश्चिम बंगाल चुनावों के मद्देनजर इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से तूल दे रही है।
‘वन्दे मातरम्’ का इतिहास विवादों से भरा रहा है। 1936 में मुस्लिम लीग ने इसके विरोध में प्रस्ताव पारित किया था, जिसमें कहा गया था कि मुस्लिम छात्रों पर इसे गाने का दबाव डाला जाता है और इसमें हिंदू देवी-देवताओं के प्रति आपत्तिजनक बातें हैं। आजादी के बाद, कांग्रेस ने एक समिति की सिफारिश पर गीत के केवल शुरुआती दो छंदों को स्वीकार किया। बावजूद इसके, आज भी इस गीत के धार्मिक पहलुओं को लेकर आपत्तियां उठती रहती हैं।
फिलहाल, पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में नया विवाद सामने आया है। स्थानीय नेता हुमायूं कबीर ने “न्यू बाबरी” नामक एक परियोजना शुरू की है। बेल्डांगा में हुए एक कार्यक्रम में, कबीर के समर्थकों ने परियोजना के लिए चंदा इकट्ठा करने की जानकारी सोशल मीडिया पर साझा की और नींव की पट्टिकाएं लगाईं। आलोचकों का आरोप है कि कबीर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का इस्तेमाल कर एक नई पार्टी लॉन्च करने की फिराक में हैं।
कबीर ने अब कोलकाता में कुरान पाठ का आयोजन करने का ऐलान किया है, जिसे हिंदू संगठनों द्वारा आयोजित गीता पाठ का जवाब माना जा रहा है। यह कदम वैचारिक मतभेद को और गहराता है। जहाँ कबीर के समर्थक ‘वन्दे मातरम्’ का विरोध करते हैं, वहीं वे मुगल शासक बाबर से जुड़े प्रतीकों का समर्थन कर रहे हैं। इस पर, उन पर ऐतिहासिक विभाजनकारी रेखाओं को फिर से उभारने के आरोप लग रहे हैं।
हाल के दिनों में, हैदराबाद और बिहार जैसे शहरों में भी बाबर से जुड़े पोस्टर हिंदू घरों पर चिपकाने जैसी घटनाएं हुई हैं, जो इसी तरह के सांप्रदायिक उकसावे का हिस्सा हैं।
