रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रविवार को एक चौंकाने वाला खुलासा करते हुए दावा किया कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए सरकारी धन का उपयोग करना चाहते थे, लेकिन सरदार वल्लभभाई पटेल ने इस योजना का पुरजोर विरोध किया और उसे सफल नहीं होने दिया। यह बयान उन्होंने गुजरात में सरदार पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित ‘एकता मार्च’ में दिया।
राजनाथ सिंह ने किसी भी राजनीतिक दल का नाम लिए बिना कहा कि कुछ शक्तियां लगातार सरदार पटेल की विरासत को धूमिल करने का प्रयास करती रही हैं। उन्होंने गर्व से कहा कि वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरदार पटेल को इतिहास में उनका उचित स्थान मिला है और उनके महत्वपूर्ण योगदानों को फिर से राष्ट्रीय पटल पर लाया गया है।
रक्षा मंत्री ने विस्तार से बताया, “पंडित जवाहरलाल नेहरू सार्वजनिक धन का इस्तेमाल करके बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाना चाहते थे। लेकिन, गुजरात के लाल, सरदार वल्लभभाई पटेल ने इसका कड़ा विरोध किया और सरकारी पैसों से बाबरी मस्जिद के निर्माण की योजना को कामयाब नहीं होने दिया।”
सिंह ने आगे कहा कि पटेल का दृष्टिकोण मंदिरों के प्रति पुनरुद्धार के प्रति भी समान था, जैसा कि सोमनाथ मंदिर के मामले में देखा गया। उन्होंने बताया कि जब नेहरू ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार को लेकर आपत्ति जताई थी, तब पटेल ने स्पष्ट किया था कि मंदिर के नवीनीकरण के लिए आवश्यक 30 लाख रुपये पूरी तरह से जनता से मिले थे और इसमें सरकार का कोई भी धन शामिल नहीं था।
उन्होंने जोर देकर कहा, “यह सच्ची धर्मनिरपेक्षता है। ठीक इसी तरह, सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए कोई पैसा नहीं दिया। पूरा खर्च देश के नागरिकों ने स्वेच्छा से वहन किया।”
इसके अतिरिक्त, राजनाथ सिंह ने 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पटेल को कांग्रेस अध्यक्ष बनाया जा सकता था, लेकिन महात्मा गांधी के कहने पर उन्होंने स्वेच्छा से अपना नाम वापस ले लिया ताकि नेहरू अध्यक्ष बन सकें। उन्होंने कहा, “1946 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल का नाम बहुमत से प्रस्तावित था। लेकिन, गांधीजी के कहने पर उन्होंने नेहरू के लिए रास्ता बनाते हुए अपना नाम वापस ले लिया।”
