जम्मू और कश्मीर में सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण नीति को लेकर चल रहे विवाद के बीच, राज्य सरकार एक बड़ा फेरबदल करने की तैयारी में है। कल होने वाली कैबिनेट बैठक में इस नई आरक्षण नीति को अंतिम रूप दिया जाएगा। पिछले कुछ समय से सामान्य श्रेणी के युवा आरक्षित सीटों के बढ़ते प्रतिशत से परेशान हैं और इस मसले पर व्यापक विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं।
वर्तमान आरक्षण प्रणाली, जिसे पिछली सरकार ने लागू किया था, ने सरकारी पदों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षित कोटे को लगभग 60-70% तक पहुंचा दिया था। इससे सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए अवसरों का संकट पैदा हो गया है।
मौजूदा व्यवस्था में अनुसूचित जनजाति (ST-I, ST-II), अनुसूचित जाति (SC), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और पिछड़ा क्षेत्र निवासी (RBA) जैसे वर्गों के साथ-साथ आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) और अन्य विशेष श्रेणियों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है।
जनरल कैटेगरी के युवा, जिनकी आबादी लगभग 69% है, का कहना है कि उन्हें केवल 40% या उससे भी कम सीटें मिलती हैं, जो उनकी आबादी के अनुपात में काफी कम है। यह स्थिति उनमें हताशा और अन्याय की भावना पैदा कर रही है।
इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर भी प्रदर्शन हुए हैं। सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस के भीतर भी मतभेद देखे जा रहे हैं, जहां पार्टी के सांसद आगा रुहुल्लाह मेहदी ने भी प्रदर्शनकारियों का समर्थन करते हुए नीति की समीक्षा की मांग की है।
उमर अब्दुल्ला सरकार ने अपने चुनाव घोषणापत्र में आरक्षण नीति की समीक्षा कर असंतुलन को दूर करने का वादा किया था। इस दिशा में, सरकार ने एक कैबिनेट उप-समिति का गठन किया था जिसने इस समस्या का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट सौंपी है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि पिछड़ा क्षेत्र निवासी (RBA) और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) कोटे से कुछ सीटें कम करके सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए कोटा बढ़ाया जाए। इसका मुख्य उद्देश्य कुल आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट के 50% की सीमा के भीतर रखना है।
3 दिसंबर को होने वाली कैबिनेट बैठक में इन सिफारिशों पर मुहर लगने की उम्मीद है। सूत्रों का कहना है कि सरकार खुली योग्यता (ओपन मेरिट) कोटे को वर्तमान 30% से बढ़ाकर करीब 40% कर सकती है।
इस बढ़ोतरी की भरपाई के लिए, आरबीए और ईडब्ल्यूएस जैसी श्रेणियों से लगभग 10% सीटें घटाई जा सकती हैं। हालांकि, एससी, एसटी और ओबीसी जैसी संवैधानिक रूप से आरक्षित श्रेणियों में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। यह भी बताया जा रहा है कि आरबीए का बड़ा हिस्सा अब लद्दाख क्षेत्र में आता है, इसलिए वहां से कोटे में कमी की जा सकती है।
कानूनी पहलू को देखते हुए, सरकार हाई कोर्ट के फैसलों का भी इंतजार कर रही है, क्योंकि वर्तमान नीति पर वहां भी याचिकाएं लंबित हैं।
कैबिनेट के फैसले अंतिम मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजे जाएंगे।
