भारत की संसद में आज से शीतकालीन सत्र की शुरुआत हुई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए राज्यसभा सभापति सी. पी. राधाकृष्णन का अभिनंदन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि राधाकृष्णन का लंबा अनुभव और उनका समर्पण सदन के लिए अमूल्य होगा। उन्होंने कहा, “आज शीतकालीन सत्र का शुभारंभ हो रहा है और यह हम सबके लिए अत्यंत गौरव का क्षण है कि हम एक नए सभापति का स्वागत कर रहे हैं। मेरी ओर से आपको शुभकामनाएं।” प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि राधाकृष्णन के नेतृत्व में सदन की गरिमा सर्वोच्च रहेगी।
पीएम मोदी ने राधाकृष्णन के जमीनी जुड़ाव की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, “हमारे सभापति एक सरल, कृषक पृष्ठभूमि से आते हैं और उन्होंने अपना पूरा जीवन सेवा में लगाया है। उनका जीवन हम सबके लिए एक प्रेरणा है।” उन्होंने झारखंड में जनजातीय लोगों के बीच उनके काम का विशेष उल्लेख किया। प्रधानमंत्री ने बताया कि कैसे राधाकृष्णन ने प्रोटोकॉल की परवाह किए बिना, छोटे से छोटे गांवों तक पहुंचकर लोगों की सेवा की। उन्होंने कहा, “मैं समझता हूं कि पद का बोझ या प्रोटोकॉल लोगों को कभी-कभी घेर लेता है, लेकिन आपमें मैंने ऐसी कोई बंदिश नहीं देखी।”
सत्र शुरू होने से पहले, प्रधानमंत्री ने मीडिया को संबोधित करते हुए विपक्ष पर निशाना साधा। उन्होंने विपक्ष पर संसद का उपयोग चुनावी जीत की तैयारी या हार की हताशा निकालने के लिए करने का आरोप लगाया। मोदी ने कहा कि वे सकारात्मक राजनीति के लिए सुझाव देने को तैयार हैं और विपक्ष को हार से आगे बढ़कर देश हित में सोचने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “यह सत्र केवल एक रस्म अदायगी नहीं, बल्कि देश के विकास की दिशा में हमारे सामूहिक प्रयासों को और मजबूत करने का एक अवसर है।” उन्होंने हाल ही में बिहार में हुए चुनावों में महिलाओं की भागीदारी की सराहना की।
‘हताशा का मंच न बने संसद’
प्रधानमंत्री ने विपक्ष को चेताया कि उन्हें चुनावी हार को संसद में अनावश्यक नाटक का आधार नहीं बनाना चाहिए। उन्होंने कहा, “कुछ दल बिहार की हार के बाद बेचैन दिखाई दे रहे हैं।” उन्होंने कहा कि संसद बहस और विचार-विमर्श का स्थान है, न कि हताशा या नौटंकी का। “संसद में सकारात्मकता और राष्ट्र निर्माण पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए, न कि नकारात्मकता और ड्रामा पर,” उन्होंने कहा। प्रधानमंत्री ने यह भी अपील की कि नए और युवा सांसदों को अपनी बात रखने का पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए, ताकि वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों की समस्याओं और राष्ट्रीय मुद्दों को उठा सकें। उन्होंने कहा, “यह ज़रूरी है कि पहली बार सदन में आए सांसदों को भी अपनी बात कहने का मौका मिले। ड्रामा करने के लिए बहुत सारे मंच हैं, पर यह मंच उसके लिए नहीं है।”
