कांग्रेस सांसद शशि थरूर एक बार फिर पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक से अनुपस्थित रहे, जिससे यह सवाल और गहरा हो गया है कि क्या वह कांग्रेस से अलग होने की राह पर हैं। यह बैठक संसद के शीतकालीन सत्र की तैयारियों के मद्देनजर आयोजित की गई थी और इसमें पार्टी की शीर्ष नेतृत्व, सोनिया गांधी, भी मौजूद थीं। संसद का शीतकालीन सत्र 1 दिसंबर से शुरू होकर 19 दिसंबर तक चलेगा।
दिल्ली में कांग्रेस के रणनीतिक समूह की इस अहम बैठक में तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर की गैरमौजूदगी चर्चा का विषय बनी हुई है। थरूर के कार्यालय ने उनके न आने का कारण केरल में होना और अपनी बीमार मां के साथ यात्रा करना बताया। यह भी ज्ञात हुआ है कि स्थानीय निकाय चुनावों में प्रचार व्यस्तताओं के चलते कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल भी बैठक में शामिल नहीं हो पाए।
यह पहली बार नहीं है जब थरूर पार्टी की बैठकों से गायब रहे हों। हाल ही में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ मुद्दे पर बुलाई गई एक बैठक में भी उन्होंने अस्वस्थता का हवाला देकर किनारा कर लिया था। हालांकि, इससे ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति और प्रधानमंत्री की नीतियों की तारीफ करने वाले उनके सोशल मीडिया पोस्ट ने पार्टी के भीतर हलचल मचा दी थी। थरूर ने प्रधानमंत्री मोदी की भारत को ‘उभरते बाजार’ से ‘उभरते मॉडल’ के रूप में बदलने की क्षमता की सराहना की थी। उन्होंने विशेष रूप से प्रधानमंत्री द्वारा औपनिवेशिक ‘दासता मानसिकता’ को दूर करने और भारतीय भाषा, संस्कृति व विरासत पर जोर देने के प्रयासों की प्रशंसा की।
हालांकि थरूर का कहना है कि वे पार्टी नहीं छोड़ रहे हैं और उनके विचार पार्टी की नीतियों से अलग हो सकते हैं, लेकिन उनकी सार्वजनिक प्रशंसा ने कांग्रेस के भीतर असंतोष को जन्म दिया है और उनके भविष्य को लेकर अटकलें तेज कर दी हैं। उन्होंने विशेष रूप से प्रधानमंत्री के उस संबोधन का जिक्र किया था जिसमें मैकॉले की 200 वर्ष पुरानी ‘दासता मानसिकता’ को चुनौती देने की बात कही गई थी।
कांग्रेस के कुछ नेताओं ने थरूर के रुख पर कड़ी आपत्ति जताई है। एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने तो यहां तक पूछ लिया कि अगर थरूर को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी की नीतियां बेहतर हैं, तो उन्हें कांग्रेस में क्यों बने रहना चाहिए। यह सवाल थरूर को या तो स्पष्टीकरण देने या ‘पाखंडी’ कहे जाने की ओर इशारा करता है। थरूर का पार्टी की प्रमुख बैठकों से लगातार दूर रहना, उनके और कांग्रेस के बीच लंबे समय से चले आ रहे अनौपचारिक संबंधों पर प्रकाश डालता है, खासकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी घटनाओं के बाद।
