कर्नाटक कांग्रेस में चल रहे नेतृत्व विवाद को शांत करने के लिए पार्टी हाईकमान ने सक्रिय कदम उठाए हैं। सूत्रों के मुताबिक, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री व प्रदेशाध्यक्ष डी. के. शिवकुमार को अब आपस में बैठकर इस मसले का हल निकालने और उसके बाद केंद्रीय नेतृत्व को सूचित करने का निर्देश दिया गया है।
इस पहल के तहत, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार, 29 नवंबर की सुबह 9:30 बजे उपमुख्यमंत्री शिवकुमार को अपने आवास पर नाश्ते के लिए बुलाया है। जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री ने इस मुलाकात के लिए अपने सभी पूर्व निर्धारित कार्यों को स्थगित कर दिया है। हालांकि, अभी तक शिवकुमार की ओर से निमंत्रण की स्वीकृति की पुष्टि नहीं हुई है।
एआईसीसी के महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने दोनों वरिष्ठ नेताओं से फोन पर बात कर उन्हें आपसी बातचीत से इस मुद्दे को सुलझाने और अंतिम निर्णय से आलाकमान को अवगत कराने का आग्रह किया है।
यदि यह स्थानीय बैठक सफल होती है, तो दिल्ली में इस मामले को सुलझाने की योजना को फिलहाल टाल दिया जाएगा, जिससे पार्टी को अनावश्यक प्रचार से बचाया जा सकेगा। लेकिन, अगर दोनों नेताओं के बीच सहमति नहीं बन पाती है, तो रविवार, 30 नवंबर को दोनों को दिल्ली तलब किए जाने की संभावना है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने खुद बेंगलुरु में मीडिया से कहा कि उन्होंने हाईकमान के निर्देश पर ही शिवकुमार को नाश्ते पर बुलाया है।
“हाईकमान ने कहा है कि हम पहले आपस में बात करें, उसके बाद हमें दिल्ली बुलाया जाएगा। इसीलिए मैंने यह बैठक बुलाई है,” उन्होंने स्पष्ट किया।
मुख्यमंत्री ने यह भी दोहराया कि वह नेतृत्व के सवाल पर अपने पूर्व बयान पर कायम हैं। “मैंने कहा था कि मैं हाईकमान का फैसला मानूंगा, और मैं आज भी उसी बात पर अडिग हूं,” सिद्धारमैया ने कहा।
उन्होंने बताया कि शिवकुमार का रवैया भी ऐसा ही है और आवश्यकता पड़ने पर दोनों दिल्ली जाने के लिए तैयार हैं।
कुछ समय पहले, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने संकेत दिया था कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाया जाएगा।
मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और शिवकुमार के खेमों के बीच सार्वजनिक रूप से चल रही बयानबाजी और तनातनी ने पार्टी के लिए एक मुश्किल स्थिति पैदा कर दी थी। सिद्धारमैया जहां पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहने की बात कह रहे थे, वहीं शिवकुमार के समर्थक नेतृत्व परिवर्तन की मांग कर रहे थे।
कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता एम. वीरप्पा मोइली ने पार्टी के भीतर इस कलह को “राष्ट्रीय शर्मिंदगी” करार दिया। उन्होंने नेतृत्व पर मामले को गंभीरता से न लेने और समय पर कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे स्थिति और खराब हुई।
मोइली ने राज्य इकाई के भीतर “एक-दूसरे से आगे निकलने” की कोशिशों की भी आलोचना की और इसे “अराजक” आंतरिक माहौल का संकेत बताया।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि आलाकमान की पहली प्राथमिकता अनुशासन बनाए रखना और आने वाले राजनीतिक अवसरों के लिए एकजुटता दिखाना है।
शनिवार की नाश्ते की बैठक से उत्पन्न होने वाले परिणाम और क्या यह दिल्ली में होने वाली संभावित सुनवाई की आवश्यकता को समाप्त कर देगा, इस पर राजनीतिक गलियारों में कड़ी नजर रखी जाएगी।
