नई दिल्ली: युद्ध के बदलते स्वरूप में तकनीकी श्रेष्ठता निर्णायक साबित हो रही है। वैश्विक महाशक्तियाँ जैसे अमेरिका, चीन, इज़राइल और रूस लंबे समय से भविष्य के युद्धों की तैयारी कर रही हैं, और भारत भी अब इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है।
इस दिशा में महत्वपूर्ण हैं डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स (DEWs), जो लेजर जैसी केंद्रित ऊर्जा किरणों का उपयोग करके ड्रोन, मिसाइल और अन्य तेजी से आने वाले खतरों को बेअसर करते हैं।
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने हाल ही में, अप्रैल 2025 में, आंध्र प्रदेश के कुरनूल में अपनी 30-किलोवाट Mk-II(A) लेजर DEW प्रणाली का सफल परीक्षण किया। इस परीक्षण में, प्रणाली ने पांच किलोमीटर की दूरी से फिक्स्ड-विंग विमान, ड्रोन के झुंड और निगरानी सेंसरों को सटीकता से निष्क्रिय करने की अपनी क्षमता साबित की।
लेजर हथियारों की एक बड़ी खासियत उनकी लागत-प्रभावशीलता है। एक मिसाइल बनाने की तुलना में लेजर शॉट की लागत बहुत कम होती है, यही वजह है कि दुनिया भर के देश इस तकनीक को विकसित करने के लिए होड़ कर रहे हैं। ये हथियार प्रकाश की गति से लक्ष्य पर प्रहार करते हैं, जिससे वे तेज गति वाले खतरों का तुरंत जवाब देने में सक्षम होते हैं।
हालांकि भारत की 30-किलोवाट Mk-II(A) प्रणाली अभी बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है, यह एक महत्वपूर्ण शुरुआत है। यह परीक्षण भारत को अमेरिका, रूस, चीन और इज़राइल जैसे देशों की अग्रिम लेजर तकनीक के साथ एक ही पंक्ति में खड़ा करता है। तुलना के लिए, इज़राइल 300-किलोवाट लेजर विकसित कर रहा है जो बैलिस्टिक मिसाइलों को भेदने में सक्षम हो सकते हैं।
इस परीक्षण से यह स्पष्ट है कि भारत अब लेजर हथियार प्रणालियों के विकास में वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख खिलाड़ी बन गया है। DRDO का लक्ष्य अगले दो वर्षों में इन प्रणालियों को भारतीय सेना में शामिल करना है। भविष्य में इन्हें युद्धपोतों, लड़ाकू विमानों और यहां तक कि उपग्रहों पर भी तैनात करने की योजना है।
इसके अलावा, 300-किलोवाट क्षमता वाली ‘सूर्य’ नामक लेजर DEW पर भी काम जारी है, जो 20 किलोमीटर तक की दूरी से तेज गति वाली मिसाइलों को भेदने में सक्षम होगी।
**DEWs की कार्यप्रणाली:**
DEWs पारंपरिक विस्फोटक के बजाय केंद्रित ऊर्जा का उपयोग करते हैं, जैसे लेजर, माइक्रोवेव या कण बीम। लेजर अत्यधिक गर्मी उत्पन्न करके लक्ष्य के महत्वपूर्ण हिस्सों को पिघला या नष्ट कर सकता है।
Mk-II(A) ने ड्रोन और निगरानी उपकरणों को पल भर में निष्क्रिय कर दिखाया। माइक्रोवेव DEWs एक साथ कई ड्रोनों को निशाना बना सकते हैं, जबकि कण बीम तकनीक, जो अभी विकास के शुरुआती दौर में है, भविष्य में सूक्ष्म स्तर पर क्षति पहुंचाने में सक्षम हो सकती है।
DEWs के मुख्य लाभों में कम लागत, तुरंत प्रतिक्रिया, गोला-बारूद की आवश्यकता न होना और आसपास के क्षेत्र के लिए कम जोखिम शामिल हैं।
दुनिया भर में इस क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है। अमेरिकी नौसेना LaWS और HELIOS सिस्टम का उपयोग करती है, इज़राइल का आयरन बीम कम लागत में रॉकेटों और मोर्टार का सामना करता है, रूस का पेरेसवेट उपग्रह दुश्मन के उपग्रहों को जाम कर सकता है, और चीन का साइलेंट हंटर ड्रोन और वाहनों को निष्क्रिय कर सकता है। भारत का Mk-II(A) इस वैश्विक होड़ में भारत की मजबूत स्थिति को दर्शाता है।
**चीन और पाकिस्तान से बढ़ते खतरों का सामना:**
चीन और पाकिस्तान से बढ़ते ड्रोन और मिसाइल खतरों के मद्देनजर यह क्षमता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। रूस-यूक्रेन युद्ध जैसे आधुनिक संघर्षों ने दिखाया है कि कैसे सस्ते ड्रोन समूह पारंपरिक वायु रक्षा प्रणालियों को ध्वस्त कर सकते हैं।
हालांकि, इस तकनीक की अपनी सीमाएं हैं। मौसम की स्थिति, जैसे बारिश, कोहरा, बर्फ, धूल या आर्द्रता, लेजर की शक्ति को कम कर सकती है, जिससे भारत जैसे विविध भौगोलिक क्षेत्रों में तैनाती में चुनौतियाँ आ सकती हैं।
उच्च-ऊर्जा लेजर के लिए भारी मात्रा में बिजली की आवश्यकता होती है, और इसलिए, कॉम्पैक्ट मोबाइल पावर सिस्टम का विकास एक जटिल कार्य है। इसके अलावा, प्रारंभिक विकास और तैनाती की लागतें भी काफी अधिक हैं।
साथ ही, दुश्मन राष्ट्र लेजर हथियारों को नाकाम करने के लिए परावर्तक कोटिंग्स और इलेक्ट्रॉनिक हार्डनिंग जैसी प्रति-तकनीकें भी विकसित कर रहे हैं।
इन बाधाओं के बावजूद, लेजर हथियारों को भविष्य में टैंकों, जहाजों, लड़ाकू विमानों और उपग्रहों में एकीकृत किया जा सकता है, जिससे भारत की रक्षा क्षमताएं अभूतपूर्व रूप से बढ़ जाएंगी।
**एक रणनीतिक विजय:**
डायरेक्टेड एनर्जी वेपन्स आने वाले दशकों में युद्ध के परिदृश्य को पूरी तरह से बदल देंगे। भारत के Mk-II(A) का सफल परीक्षण केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं है, बल्कि एक महत्वपूर्ण रणनीतिक संदेश भी है कि भारत भविष्य के युद्धों में अपनी अग्रणी भूमिका बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
2027 तक, ‘सूर्य’ जैसी उन्नत प्रणालियाँ और बहुस्तरीय वायु रक्षा क्षमताएं भारत को वैश्विक रक्षा प्रौद्योगिकी में और मजबूत करेंगी, जो भविष्य के रक्षा क्षेत्र के लिए एक परिवर्तनकारी कदम साबित होगा।
