भारत अपनी सीमाओं की सुरक्षा को अत्याधुनिक बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है, जिसमें विज्ञान, प्रौद्योगिकी और संयुक्त विकास पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इस दिशा में, नवंबर 2025 में तेल अवीव में हुई 17वीं भारत-इज़राइल संयुक्त कार्य समूह (JWG) की बैठक में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) आधारित निगरानी, स्मार्ट सीमा प्रबंधन, ड्रोन-विरोधी प्रौद्योगिकियां, साइबर सुरक्षा और रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आपसी सहयोग को शीर्ष प्राथमिकता दी गई। यह साझेदारी सिर्फ़ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तक सीमित नहीं है; भारत इसे अपनी सामरिक ज़रूरतों, आत्मनिर्भरता के लक्ष्यों और समग्र आधुनिकीकरण की योजनाओं के अनुरूप ढाल रहा है।
15,000 किलोमीटर से अधिक की जटिल अंतरराष्ट्रीय सीमाओं, जिनमें पहाड़ी, रेगिस्तानी, जंगली और नदी के किनारे के इलाके शामिल हैं, के कारण भारत केवल मानव गश्त पर पूरी तरह निर्भर नहीं रह सकता। एक रक्षा अध्ययन के अनुसार, 2019 तक भारत की सीमा के सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सों में से केवल लगभग 60 किलोमीटर ही उन्नत तकनीक से लैस थे। इस कमी को पूरा करने के लिए, भारत व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS) जैसे आधुनिक समाधानों को लागू करने पर तेज़ी से काम कर रहा है। इसके शुरुआती चरण में 71 किलोमीटर का क्षेत्र कवर किया गया था, और आने वाले चरणों में सेंसर, कैमरे, थर्मल इमेजर और यूएवी नेटवर्क का उपयोग करके लगभग 1,955 किलोमीटर के दुर्गम क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक निगरानी का विस्तार करने की योजना है।
तेल अवीव में हुई बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने स्पष्ट किया कि भविष्य की सीमा सुरक्षा “डेटा-संचालित” और “मानव-नियंत्रित” होगी, जहाँ मशीनें खतरों की पहचान करेंगी और अलर्ट जारी करेंगी, लेकिन अंतिम निर्णय और कार्रवाई मानव विवेक पर निर्भर करेगी। एकीकृत निगरानी में इज़राइल का अनुभव महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत का मुख्य ध्यान आयातित समाधानों पर निर्भर रहने के बजाय, अपने विशिष्ट भौगोलिक और सामरिक वातावरण के लिए उपयुक्त प्रणालियों को सह-विकसित करने पर है। इसी कारण, संयुक्त अनुसंधान एवं विकास (R&D), AI मॉडल का प्रशिक्षण, साइबर सुरक्षा प्रोटोकॉल और भारतीय रक्षा उद्योग के लिए दीर्घकालिक प्रौद्योगिकी हस्तांतरण ढांचे JWG की चर्चाओं का केंद्र बिंदु रहे।
‘ड्रोन एनाटॉमी’ के सीईओ, सौरभ झा ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा, “ड्रोन द्वारा सीमा पार की जाने वाली गतिविधियाँ पहले से कहीं ज़्यादा तेज़, कम ऊंचाई पर और अप्रत्याशित हो गई हैं। AI-संचालित पहचान और प्रतिक्रिया प्रणालियाँ अब एक विकल्प नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता बन गई हैं। भारत का सह-विकसित काउंटर-यूएवी तकनीक पर ज़ोर यह सुनिश्चित करेगा कि हमें ऐसे समाधान मिलें जो हमारे अपने भूभाग और खतरे के पैटर्न के लिए पूरी तरह उपयुक्त हों।”
दोनों देश ड्रोन से उत्पन्न होने वाले खतरों को लेकर समान रूप से चिंतित हैं। भारत ने पंजाब, जम्मू और राजस्थान जैसे राज्यों में ड्रोन द्वारा हथियार गिराए जाने और हथियारबंद ड्रोन के इस्तेमाल की घटनाओं को देखा है, जबकि इज़राइल को पहले भी परिष्कृत ड्रोन हमलों और झुंड हमलों का सामना करना पड़ा है। यही कारण है कि AI-आधारित ड्रोन-रोधी प्रणालियाँ, RF जैमर और प्रारंभिक चेतावनी के लिए संयुक्त डेटा-साझाकरण को JWG में अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्रों के रूप में देखा गया। यह सहयोग पूरी तरह से भारत की आवश्यकताओं पर आधारित है, न कि किसी पर निर्भरता पर।
भारत और इज़राइल के बीच वर्तमान रक्षा संबंध का एक बड़ा हिस्सा सह-विकास और सह-उत्पादन पर केंद्रित है। बराक-8 मिसाइल प्रणाली जैसे संयुक्त प्रोजेक्ट यह साबित करते हैं कि दोनों देश मिलकर किस प्रकार अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा, अडानी-एल्बिट द्वारा भारत में हर्मीस-श्रेणी के ड्रोन का निर्माण, घरेलू उत्पादन और निर्यात क्षमता को बढ़ावा देने में सहयोग की भूमिका को दर्शाता है। भारत का लक्ष्य स्पष्ट है: आयात पर निर्भरता कम करना, स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना और एक सुदृढ़ रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना।
संक्षेप में, भारत-इज़राइल रक्षा सहयोग का यह नया दौर किसी एक देश को दूसरे पर बढ़त दिलाने के लिए नहीं है। यह एक ऐसी साझेदारी है जिसे भारत की सामरिक ज़रूरतों, उसकी तकनीकी स्वायत्तता और आधुनिक युद्ध के बदलते परिदृश्यों को ध्यान में रखकर आकार दिया जा रहा है। तेल अवीव में हुई JWG बैठक ने इस संतुलित, प्रौद्योगिकी-उन्मुख और भारत-केंद्रित दृष्टिकोण को एक नई और सुस्पष्ट दिशा प्रदान की है।
