राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने बुधवार को असम और पूर्वोत्तर क्षेत्र के युवाओं से अपील की कि वे संघ को बिना किसी पक्षपात या बाहरी विमर्शों के प्रभाव के देखें। गुवाहाटी में ‘सुदर्शन्यालय’ में आयोजित एक युवा नेतृत्व सम्मेलन में विभिन्न क्षेत्रों के सौ से अधिक युवा प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए, भागवत ने संघ के सिद्धांतों, आदर्शों और कार्यप्रणाली पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने संघ के संबंध में चल रही बहसों पर भी अपनी बात रखी।
भागवत ने भारत की प्राचीन परंपरा का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सिखाती है कि हर किसी का अपना मार्ग हो सकता है, और दूसरों के हालात को समझते हुए उनके मार्ग का भी सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो समाज वास्तव में विविधता का सम्मान करता है, वह हिंदू समाज है। RSS का एक मुख्य लक्ष्य ऐसे ही समाज का निर्माण करना है। उन्होंने विश्वास जताया कि भारतीय समाज के एकजूट और सशक्त होने पर ही देश की प्रगति का मार्ग प्रशस्त होगा।
उन्होंने भ्रष्टाचार उन्मूलन के लिए केवल कानून बनाने की बजाय चरित्र निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। गौ संरक्षण के संबंध में भी उन्होंने कहा कि कानूनी उपायों के साथ-साथ समाज में जनजागरूकता फैलाना अत्यंत आवश्यक है।
‘भारत पहले’ की नीति का समर्थन करते हुए, भागवत ने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने वाली विदेश नीति पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत को अमेरिका या चीन जैसे देशों के प्रति कोई विशेष झुकाव या विरोध नहीं रखना चाहिए, बल्कि अपनी विदेश नीति को पूरी तरह से भारत के हितों के इर्द-गिर्द केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने समझाया कि अमेरिका और चीन भी अपने राष्ट्रीय हितों को साधने के लिए ही काम करते हैं, और उनकी प्रतिद्वंद्विता भी इसी का परिणाम है।
भागवत ने यह भी कहा कि एक सशक्त और आत्मनिर्भर भारत न केवल अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है, बल्कि वैश्विक शांति और सामंजस्य स्थापित करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है, जिससे विश्व कल्याण में वृद्धि होगी।
