नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शराब की टेट्रा पैक पैकेजिंग पर गंभीर चिंता जताते हुए सोमवार को राज्यों को आड़े हाथों लिया। न्यायालय ने कहा कि कुछ व्हिस्की ब्रांडों के टेट्रा पैक इतने सामान्य दिखते हैं कि वे फलों के जूस के डिब्बे का भ्रम पैदा करते हैं, और उनमें आवश्यक स्वास्थ्य चेतावनियों का भी अभाव है। शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि इससे बच्चों के लिए शराब को आसानी से स्कूल ले जाने का खतरा बढ़ जाता है। अदालत ने राज्यों के ऐसे फैसलों पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि इन निर्णयों के पीछे मुख्य उद्देश्य राजस्व बढ़ाना है, न कि सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करना।
न्यायालय ने सीधे तौर पर पूछा, “ये जूस के डिब्बे की तरह क्यों दिखते हैं? बच्चे इन्हें स्कूल ले जा सकते हैं। सरकारें इस तरह की पैकेजिंग को कैसे मंजूरी दे सकती हैं?” अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि इन पैकों में शराब होने का कोई संकेत नहीं है और वैधानिक चेतावनियों का पूरी तरह से अभाव है।
यह मामला असल में एक लंबे ट्रेडमार्क विवाद से जुड़ा है, जो ऑफिसर’स चॉइस और ओरिजिनल चॉइस नामक दो प्रमुख व्हिस्की ब्रांडों के बीच चल रहा है। ये दोनों ब्रांड भारत में अत्यधिक लोकप्रिय हैं और पिछले दो दशकों में इनकी संयुक्त बिक्री ₹60,000 करोड़ से अधिक हो चुकी है।
विवाद का मुख्य बिंदु यह है कि क्या ओरिजिनल चॉइस ब्रांड का नाम और पैकेजिंग, ऑफिसर’स चॉइस से इतनी मिलती-जुलती है कि यह उपभोक्ताओं को भ्रमित कर सकती है। इसमें “CHOICE” शब्द का साझा उपयोग, रंगों, बैज और लेआउट की समानता शामिल है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि यह विवाद 20 वर्षों से अधिक समय से लंबित है। अदालत ने सुझाव दिया कि कानूनी लड़ाई को लंबा खींचने के बजाय, दोनों कंपनियों को भ्रम की स्थिति से बचने के लिए अपनी पैकेजिंग और डिजाइन में बदलाव करने पर विचार करना चाहिए। इसमें रंगों, लोगो की स्थिति और “CHOICE” शब्द की लिखावट में बदलाव शामिल हो सकता है। दोनों कंपनियों ने इन सुझावों पर काम करने की इच्छा जताई है।
