बिहार में चुनावी माहौल गरमा गया है, जहाँ पहले चरण के मतदान में रिकॉर्ड तोड़ मतदाता भागीदारी देखी गई। 121 विधानसभा सीटों पर गुरुवार को हुए मतदान में 64.69% की बंपर वोटिंग दर्ज की गई। यह आँकड़ा अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है, खासकर मतदाता सूची में हुए विशेष गहन संशोधन (SIR) के बाद।
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) के अनुसार, यह मतदान दर 2024 के लोकसभा चुनावों से 9.3% अधिक है और 2020 के विधानसभा चुनावों से 8.8% अधिक है। बिहार के इतिहास में 2010 के बाद से यह सबसे अधिक मतदान प्रतिशत है, जब से सीटों के अनुसार विस्तृत आँकड़े उपलब्ध हैं।
यह अभूतपूर्व मतदान प्रतिशत ऐसे समय में आया है जब हाल ही में बिहार की मतदाता सूची से लगभग 3.07 मिलियन (4%) मतदाताओं के नाम हटाए गए थे। इन 121 सीटों पर, 1.53 मिलियन (3.9%) मतदाताओं को सूची से बाहर किया गया था। ऐसे में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या इन नामों के हटने के बावजूद मतदान दर में इतनी वृद्धि संभव थी?
ECI के आंकड़ों से पता चलता है कि मतदान वाले दिन पंजीकृत मतदाताओं की संख्या 37.51 मिलियन थी, जो SIR के बाद की सूची से थोड़ी अधिक है। कुल मिलाकर, 24.3 मिलियन से अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, जो पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में लगभग 2.75 मिलियन अधिक है।
यह दर्शाता है कि मतदाता सूची से नाम हटने का वास्तविक मतदान पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा। ऐतिहासिक आँकड़े भी यही बताते हैं। 2010-2015 के बीच, इन सीटों पर पंजीकृत मतदाताओं में 21.7% की वृद्धि हुई थी, जबकि मतदान में 30.5% का इजाफा हुआ था। 2015-2020 के दौरान, दोनों में लगभग समान वृद्धि (9.2% और 9.5%) दर्ज की गई थी।
2025 में, पंजीकृत मतदाताओं की संख्या में मात्र 1.1% की मामूली वृद्धि हुई, लेकिन मतदान में 17.1% की महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई। यह दर्शाता है कि मतदाता सक्रियता बढ़ी है, भले ही नए मतदाताओं का पंजीकरण धीमा रहा हो।
विशेषज्ञों का मानना है कि SIR के दौरान हटाए गए अधिकतर नाम उन लोगों के थे जो या तो बिहार से बाहर चले गए थे या एक से अधिक जगह पर पंजीकृत थे। ये वो मतदाता थे जो आमतौर पर मतदान नहीं करते थे।
बिहार जैसे राज्य में, जहाँ परंपरागत रूप से मतदाता टर्नआउट अन्य बड़े राज्यों की तुलना में कम रहा है, SIR द्वारा हटाए गए नाम संभवतः निष्क्रिय मतदाता ही थे।
पहले चरण का मतदान यह साबित करता है कि बिहार के मतदाता मतदान के प्रति काफी उत्साही हैं, भले ही चुनावी प्रक्रिया में बड़े प्रशासनिक बदलाव किए गए हों। आने वाले दूसरे चरण के मतदान से ही यह स्पष्ट होगा कि यह उत्साह कितना प्रभावी साबित होता है और चुनावों की दिशा क्या रहती है।
