पाकिस्तान में सुरक्षा स्थिति गंभीर मोड़ ले रही है, क्योंकि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए प्रमुख शहरी केंद्रों को निशाना बनाने की धमकी दी है। अब तक खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में सक्रिय यह आतंकवादी समूह स्पष्ट रूप से लाहौर, इस्लामाबाद और कराची जैसे महत्वपूर्ण शहरों में हमले करने की मंशा जता रहा है। टीटीपी ने इस चेतावनी के पीछे अफगान पश्तूनों के “गैरकानूनी” निर्वासन को जिम्मेदार ठहराया है और कहा है कि इस अन्याय के लिए जिम्मेदार पाकिस्तानी तंत्र को जवाब देना होगा।
यह ताजा धमकी पाकिस्तानी सेना के कड़े रुख के बीच आई है। सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ ने सीमा पार से होने वाले किसी भी हमले को युद्ध की घोषणा करार दिया है और कहा है कि इसका मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पाकिस्तान की सेना किसी भी रूप में कमजोर नहीं है और आतंकवादियों को इसे परखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।
इसके बावजूद, टीटीपी के तेवर बताते हैं कि वे पाकिस्तानी सेना की चेतावनियों से विचलित नहीं हैं। समूह की हर कार्रवाई यह दर्शाती है कि वे संघर्ष के लिए तैयार हैं। हाल ही में, टीटीपी ने पाकिस्तान के तीराह घाटी क्षेत्र से पीछे हटने की घोषणा की थी, यह कदम स्थानीय बुजुर्गों के ‘जिरगा’ के साथ हुई बातचीत के बाद उठाया गया। समूह ने अपने एक प्रेस बयान में कहा है कि इस फैसले का उद्देश्य सैन्य कार्रवाई के दौरान आम नागरिकों को होने वाले नुकसान को रोकना था।
तीराह घाटी दशकों से आतंकवादियों के खिलाफ सेना के अभियानों का केंद्र रही है। 2025 में हुई एक बमबारी ने कथित तौर पर कई नागरिकों की जान ले ली थी। टीटीपी का कहना है कि उनके घाटी छोड़ने के बाद, सेना के पास स्थानीय पश्तून आबादी के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई औचित्य नहीं बचेगा। समूह ने एक उत्तेजक वीडियो जारी किया है जिसमें पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्नाह और राष्ट्रीय कवि अल्लामा इकबाल के चित्रों का अपमान किया गया है, जिसे टीटीपी अपनी ताकत का प्रदर्शन और इस्लामाबाद पर दबाव बनाने की रणनीति के तौर पर देख रहा है।
टीटीपी का दावा है कि पिछले बीस सालों में उन्होंने पाकिस्तानी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया है, और इसी आधार पर वे सेना को चुनौती देने का साहस रखते हैं।
