बिहार का चुनावी रणभूमि इस बार कई मायनों में अनूठा है, जहाँ जातिगत समीकरण मतदाताओं की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए की ज़बरदस्त जीत का दावा करते हुए राजद और कांग्रेस को सबसे खराब प्रदर्शन की चेतावनी दी। उन्होंने तेजस्वी यादव और राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि ‘जमानत पर बाहर दो युवराज’ जनता को मूर्ख बनाने के लिए झूठे वादे और अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहाँ तक कि छठ पूजा पर उपवास रखने वाली महिलाओं का भी अपमान कर रहे हैं। उन्होंने मतदाताओं से उन्हें सबक सिखाने का आह्वान किया।
राजनीति में सक्रियता से दूर चल रहे राजद नेता लालू यादव की पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने अपने बेटे तेजस्वी यादव के लिए चुनावी मैदान में उतरकर वोट मांगे। इस बीच, लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को राजद समर्थकों के गुस्से का सामना करना पड़ा। चुनाव प्रचार के दौरान हिंसा की घटनाओं ने माहौल को गरमा दिया। जीतनराम मांझी के उम्मीदवार पर जानलेवा हमला हुआ, वहीं मोकामा में जन सुराज पार्टी के एक कार्यकर्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई।
तेजस्वी यादव को अपने सहयोगियों के लिए समर्थन जुटाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दरभंगा जिले की गौरा बौरम सीट पर, जहां वीआईपी पार्टी के प्रमुख मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी, राजद के अफजल खान के खिलाफ ताल ठोक रहे हैं, तेजस्वी ने मतदाताओं को संतोष सहनी के पक्ष में वोट करने के लिए मनाने का प्रयास किया। तेजस्वी ने कहा, “गठबंधन के चलते हमें यह निर्णय लेना पड़ा है। अफजल खान एक अच्छे नेता हैं और चुनाव के बाद उन्हें पूरा सम्मान मिलेगा, पर अभी आप सभी से आग्रह है कि संतोष सहनी को वोट दें।”
तेजस्वी की यह रणनीति उन्हें मुस्लिम और मल्लाह दोनों समुदायों को साधने के लिए अपनानी पड़ी। अफजल खान के प्रति कड़ा रुख अपनाकर वे मुस्लिम वोटरों को नाराज नहीं कर सकते, वहीं मल्लाह समुदाय की उपेक्षा भी नहीं कर सकते। इस जटिल स्थिति से निपटने के लिए उन्होंने मध्य मार्ग चुना। राजद ने पहले ही 27 बागी उम्मीदवारों को पार्टी से निकाल दिया है, और हाल ही में 10 और नेताओं को निष्कासित किया गया। कांग्रेस से भी 10 बागी उम्मीदवार मैदान में हैं। कई सीटों पर महागठबंधन के दल ही आपस में”मित्रवत” मुकाबले में उलझे हैं। इसी पृष्ठभूमि में, प्रधानमंत्री मोदी ने राजद-कांग्रेस गठबंधन को “तेल और पानी” की तरह बताया, जो कभी एक नहीं हो सकते।
राहुल गांधी और तेजस्वी यादव ने बुधवार को संयुक्त रैलियों को संबोधित किया था, लेकिन गुरुवार को वे अलग-अलग चुनाव प्रचार करते दिखे। तेजस्वी यादव की चुनावी रैलियों का अंदाज राहुल गांधी से बिल्कुल अलग है। तेजस्वी, अडाणी और अंबानी जैसे मुद्दों पर चुप्पी साधे हुए हैं, वे सीधे तौर पर प्रधानमंत्री मोदी पर हमला नहीं करते और न ही राहुल गांधी के “वोट चोरी” वाले बयान को दोहराते हैं। उन्होंने छठ पूजा पर राहुल की टिप्पणियों का भी बचाव नहीं किया। तेजस्वी अपनी रैलियों में गृहमंत्री अमित शाह पर निशाना साध रहे हैं और उन्हें “बाहरी” बताकर बिहार के मतदाताओं को एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। तेजस्वी यादव का युवा वर्ग में खासा क्रेज है और उनकी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ती है। इस बार, तेजस्वी यादव ने महागठबंधन की पूरी जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा रखी है।
गुरुवार को मोकामा में हुई हत्या की घटना पर तेजस्वी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “प्रधानमंत्री 30 साल पुराने जंगल राज की बातें कर रहे हैं, लेकिन मोकामा में 30 मिनट पहले हुई हत्या पर चुप हैं।” मोकामा की घटना दर्शाती है कि बिहार में अभी भी चुनावों के दौरान हिंसा और हथियारों का प्रयोग चिंता का विषय है, हालांकि यह नब्बे के दशक से कम है। उस दौर में बाहुबली चुनाव पर हावी रहते थे और जाति व धर्म के आधार पर उनका दबदबा चलता था। आज बाहुबलियों की सीधी भागीदारी कम हुई है, लेकिन वे अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव लड़ाकर अप्रत्यक्ष रूप से सक्रिय हैं।
बिहार के चुनाव अन्य राज्यों से इस मायने में अलग हैं कि यहाँ जातिगत समीकरण निर्णायक भूमिका निभाते हैं। सीमांचल जैसे इलाकों में धार्मिक आधार पर भी ध्रुवीकरण देखने को मिलता है। नीतीश कुमार के स्वास्थ्य को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, वहीं तेजस्वी यादव पर जंगल राज और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दे हावी हैं। प्रशांत किशोर ने अपनी नई सोच के साथ चुनावी मैदान में कदम रखा है, लेकिन उनकी पार्टी अभी नई है। असदुद्दीन ओवैसी का उदय भी एक महत्वपूर्ण कारक है। ऐसे में, चुनाव परिणामों का अनुमान लगाना कठिन है। हमारे संवाददाताओं से मिली जानकारी के अनुसार, फिलहाल नीतीश-मोदी गठबंधन को बढ़त हासिल है।
 
									 
					