अफगानिस्तान के साथ बिगड़ते संबंधों के बीच पाकिस्तान के लिए अब ईरान ही एकमात्र उम्मीद बचा है। कतर और तुर्की द्वारा शांति वार्ता के असफल प्रयासों के बाद, पाकिस्तान ने अपनी समस्याओं के समाधान के लिए ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियन से मदद मांगी है। तालिबान के साथ हालिया सीमा संघर्षों ने पाकिस्तान की कमजोरियों को जगजाहिर कर दिया है, जिससे यह मध्यस्थता की तलाश और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
पाकिस्तान के शीर्ष नेतृत्व, जिसमें प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर शामिल हैं, ने पहले कतर और तुर्की के नेताओं से अफगानिस्तान के साथ शांति स्थापित करने में सहायता का अनुरोध किया था। हालांकि, ये प्रयास नाकाम रहे। अब, ईरान के राष्ट्रपति पेज़ेश्कियन ने इस विवाद को सुलझाने के लिए अपनी भूमिका निभाने की पेशकश की है। उन्होंने दोनों देशों के बीच संवाद को बढ़ावा देने की इच्छा जताई है और मुस्लिम राष्ट्रों से आपसी एकता पर जोर दिया है।
हाल ही में तेहरान में हुए आर्थिक सहयोग संगठन (ईसीओ) की बैठक में, पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री मोहसिन नकवी की अफगान उप-आंतरिक मंत्री इब्राहिम सद्र से हुई बातचीत का एक वीडियो काफी चर्चा में रहा। वीडियो में नकवी, शांति स्थापित करने के लिए मिन्नतें करते नजर आ रहे थे, जबकि अफगान मंत्री ने कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई।
विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान की मध्यस्थता की भूमिका कई कारणों से महत्वपूर्ण है। ईरान की भौगोलिक निकटता और अफगानिस्तान के अंदरूनी मामलों में उसका प्रभाव, खासकर शिया हजारा समुदाय पर, उसे एक मजबूत स्थिति में रखता है। इसके अतिरिक्त, चाबहार बंदरगाह जैसे द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग भी ईरान के पक्ष में जाते हैं।
इस बीच, पाकिस्तान अपनी आंतरिक चुनौतियों से जूझ रहा है। रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने अफगानिस्तान को सैन्य कार्रवाई की धमकी दी है, लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी स्वीकार किया है कि देश ने अपने सैनिकों के रूप में करीब 4,000 जानें गंवाई हैं। बलूचिस्तान जैसे प्रांतों में सुरक्षा बलों को आम नागरिकों के बजाय अपने ही देश के विद्रोहियों से खतरा महसूस हो रहा है, जैसा कि हालिया वीडियो फुटेज से पता चलता है। यह स्थिति पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कड़े रुख अपनाने के दावों के विपरीत है।
